हमारी हिंदू संस्कृति में पितृ का अर्थ कुल जनों की आत्मा की श्र्द्धा और कृतज्ञा के लिए की जाती है उन्हें पितृ दोष कहेते हैं। जब एक जन अपनी जीवन की दिक्कता बन्द बन्ध लगती है, तब पितृ की शांति और दोष की पूर्णा के लिए गायत्री चालीसा और पितृ गायत्री मंत्र की पाठ अनिवार्य और दिव्य पाथ है।
गायत्री मंत्र
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वाहायै स्वाधायै नित्यमेव नमो नमः ॥
ॐ पितृभ्यो नमः ॥
जो भक्त पितृ गायत्री मंत्र और गायत्री चालीसा की श्रद्धा से पाठ करता है, उसे और ओओर कुल जन्मों की और पितृ दोषों की कृपा निश्चित रूप से मिलती है। एक भक्त नियमित जीवन और कार्मिक में आज्मा लाने लागती है।
पाठ की विधि:
- शुचि और शांत स्थान की चयन करें।
- काली सुबह की योजना करके नेञ्च जल छीडकाकर पितृ को स्मरण करें।
- कुश्ठा पाटी और गगा की जौत जलायें।
- दीपक जी और गायत्री माता की छाय जलाएं।
- पितृ गायत्री मंत्र का 11, 21 या 108 बार जाप करें।
- कार्य के अंत में पितृ की क्षमा के लिए प्रार्थना करें।
लाभ:
- पितृओं की कृपा मिलती है।
- कुल जन्मों की आत्मा की शांति की पूर्णा होती है।
- कार्मिक जीवन में श्ान्ति और प्राज्यत्नता यानित करती है।
- ज्ञान और शारीरिकता में आन्तरिक्ष लाभकारी है।