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सुर लगाने के साथ अभिनय में आजमाया हाथ, आखिरी दिन भी गायकी के नाम कर गए मोहम्मद रफी

सुर लगाने के साथ अभिनय में आजमाया हाथ, आखिरी दिन भी गायकी के नाम कर गए मोहम्मद रफी
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हिंदी सिनेमा के सबसे महान गायकों में से एक, मोहम्मद रफी का आज 100वां जयंती वर्ष है। उनकी आवाज़ ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दी और आज भी उनके गीतों का जादू लोगों के दिलों में बसता है। रफी साहब ने अपनी गायकी के अलावा अभिनय की दुनिया में भी कदम रखा था, लेकिन उनका नाम हमेशा संगीत और गायकी के साथ ही जुड़ा रहेगा। 31 जुलाई 1980 को जब उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा, तो उनके साथ सुर और गीतों का एक युग भी समाप्त हो गया। आज, उनके 100वें जन्मदिन के इस खास मौके पर, आइए जानते हैं रफी साहब से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें और उनके योगदान को हिंदी सिनेमा के इतिहास में समझते हैं।

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मोहम्मद रफी का शुरुआती जीवन और गायन की शुरुआत

मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1920 को पंजाब के अमृतसर जिले के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था। रफी का असली नाम था ‘मोहम्मद रफीउद्दीन’, लेकिन उनके परिवार और दोस्तों के बीच उन्हें ‘फीको’ कहकर बुलाया जाता था। रफी का बचपन संगीत से गहरे जुड़े परिवार में बीता था। उनके पिता, अली मोहम्मद, एक संगीत प्रेमी थे, और यही कारण था कि रफी की दिलचस्पी भी संगीत में जल्दी ही विकसित हो गई।

13 साल की उम्र में रफी साहब ने लाहौर में अपनी पहली सार्वजनिक गायन प्रस्तुति दी, जहां उन्होंने के.एल. सहगल जैसे महान गायक के साथ गाने का मौका पाया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि इस शो ने उनके गायन के करियर का आगाज किया। उस वक्त रफी की आवाज़ में वह गहराई और मासूमियत थी, जो उन्हें आगे चलकर बॉलीवुड के सबसे प्रतिष्ठित गायकों में से एक बना देगी।

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सुरों का जादू: रफी की गायकी का विकास

मोहम्मद रफी की आवाज़ ने न केवल भारतीय सिनेमा को बल्कि पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी गायकी की पहचान एक मखमली आवाज़, सटीक सुर और भावनाओं के गहरे उतार-चढ़ाव में थी। रफी की आवाज़ ने हर प्रकार के गानों को अपना कर उन्हें अपनी छाप छोड़ने में सफलता पाई। रोमांटिक गाने हो, भक्ति गीत हो, या फिर ग़ज़लें, रफी के सुरों में हर एक शैली के गीतों के लिए एक अनोखी मिठास थी। उनका संगीत और गायन हमेशा से भारतीय सिनेमा का अभिन्न हिस्सा बना।

रफी ने लगभग 15,000 गाने गाए, जो कि एक रिकॉर्ड है। उन्होंने हिंदी सिनेमा में सिर्फ लता मंगेशकर, आशा भोसले जैसे दिग्गज गायकों के साथ ही नहीं, बल्कि किशोर कुमार, मुहम्मद अजीज और महेन्द्र कपूर जैसे गायकों के साथ भी काम किया। उनके गाने हर फिल्म और हर कलाकार के लिए एक नए आयाम का निर्माण करते थे। उनकी गायकी के अंदाज में इतनी विविधता थी कि वह हर अभिनेता की आवाज़ बन जाते थे।

मोहम्मद रफी और किशोर कुमार का रिश्ता

मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के बीच एक दिलचस्प और विशेष रिश्ते की बात की जाए तो यह निश्चित रूप से भारतीय संगीत इतिहास का एक अहम हिस्सा है। दोनों ही गायकों के बीच जबरदस्त प्रतिस्पर्धा थी, लेकिन इसके बावजूद एक गहरी दोस्ती और सम्मान का भी आदान-प्रदान था। इन दोनों महान गायकों के बीच की दोस्ती बॉलीवुड के सुनहरे दौर की सबसे प्यारी कहानियों में से एक मानी जाती है।

किशोर कुमार की आवाज़ की मिठास और मोहम्मद रफी की आवाज़ की गहराई का सम्मिलन सिनेमा जगत में अनोखा था। दोनों ही गायकों ने एक-दूसरे के साथ गाने में असाधारण सामंजस्य दिखाया। उनके गाने न केवल दर्शकों द्वारा सराहे गए, बल्कि फिल्म संगीत के इतिहास में अपनी एक विशेष जगह बना गए। उनका संबंध हमेशा दोस्ती और प्यार पर आधारित रहा, भले ही दोनों के संगीत में अलग-अलग खासियतें थीं।

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संगीत के क्षेत्र में योगदान

मोहम्मद रफी के योगदान को किसी एक शब्द में समेटा नहीं जा सकता। उनके गाए हुए हर गीत में एक नया अनुभव होता था, चाहे वह रोमांटिक हो या फिर प्रेरणादायक। रफी साहब का योगदान केवल गायन तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने फिल्मों में अभिनय भी किया। उनकी पहली फिल्म में उन्होंने अभिनय की शुरुआत की, हालांकि गायकी में उनका ध्यान ज्यादा था।

उनके गायन की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वह गाने के दौरान हर भावना को अपनी आवाज़ से महसूस कराते थे। चाहे वह किसी प्रेम गीत की कोमलता हो या किसी नायक के संघर्ष को उजागर करने वाला गीत हो, रफी ने अपनी आवाज़ से हर गीत में जादू भर दिया। उनकी आवाज़ को महसूस करना हर दर्शक के लिए एक अद्वितीय अनुभव था।

गायकी के साथ अभिनय का प्रयास

मोहम्मद रफी ने न केवल गायन बल्कि अभिनय में भी अपनी किस्मत आजमाई थी। हालांकि, वह इस क्षेत्र में ज्यादा सफल नहीं हो सके, लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाए। रफी साहब का मानना था कि उनका असली प्यार संगीत है, लेकिन कभी-कभी उन्होंने अभिनय में भी हाथ आजमाया। उनकी फिल्मों में अभिनय के प्रयास ने यह सिद्ध किया कि वह एक बहुमुखी कलाकार थे।

आखिरी दिन भी गायकी के नाम

मोहम्मद रफी का निधन 31 जुलाई 1980 को हुआ था, लेकिन उनका योगदान आज भी जीवित है। उनका आखिरी गाना भी एक दिलचस्प घटना थी। रफी साहब का आखिरी गाना ‘आ अब लौट चलें’ था, जो फिल्म ‘आंधी’ के लिए था। यह गाना उनके जीवन के आदर्श को प्रदर्शित करता है—कभी हार न मानने और हमेशा अपनी कला को सर्वोपरि मानने का। उनके अंतिम समय में भी उनकी गायकी ने उन्हें इस दुनिया में अपने गीतों और सुरों के माध्यम से अमर बना दिया।

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मोहम्मद रफी की धरोहर

मोहम्मद रफी का योगदान भारतीय संगीत को अनमोल धरोहर के रूप में मिला है। उनके गाए हुए गाने आज भी किसी भी संगीत प्रेमी के लिए सुनना एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। उनके सुरों का जादू समय के साथ हल्का नहीं पड़ा, बल्कि हर पीढ़ी में उनके गाने नए सिरे से जीवित हो रहे हैं। रफी साहब ने भारतीय सिनेमा में गायकी को जो ऊँचाई दी, वह हमेशा याद रखी जाएगी।

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