भगवान शिव के पुत्र और देवसेना के अधिपति भगवान कार्तिकेय, जिन्हें मुरुगन, स्कंद और कुमारस्वामी के नाम से भी जाना जाता है, विशेष रूप से दक्षिण भारत में पूजे जाते हैं। वे युद्ध और विजय के देवता हैं। इनकी आरती करने से मनुष्य को आत्मबल, पराक्रम और जीवन की जटिलताओं में विजय प्राप्त होती है। इस लेख में हम Kartikeya Ji Ki Aarti के महत्व, उसकी विधि और लाभ के साथ-साथ पूरी जानकारी देंगे।
कार्तिकेय जी की आरती
जय जय आरती वेणु गोपाला…
वेणु गोपाला वेणु लोला,
पाप विदुरा नवनीत चोरा।
जय जय आरती वेंकटरमणा…
वेंकटरमणा संकटहरणा,
सीता राम राधे श्याम।
जय जय आरती गौरी मनोहर…
गौरी मनोहर भवानी शंकर,
साम्ब सदाशिव उमा महेश्वर।
जय जय आरती राज राजेश्वरि…
राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि,
महा सरस्वती महा लक्ष्मी,
महा काली महा लक्ष्मी।
जय जय आरती आन्जनेय…
आन्जनेय हनुमन्ता,
जय जय आरति दत्तात्रेय,
दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार।
जय जय आरती सिद्धि विनायक…
सिद्धि विनायक श्री गणेश,
जय जय आरती सुब्रह्मण्य,
सुब्रह्मण्य कार्तिकेय।
कार्तिकेय जी की आरती न केवल भक्ति भाव को जाग्रत करती है बल्कि यह आत्मबल, साहस और विजय का स्रोत भी बनती है। जो भक्त नित्य श्रद्धा से कार्तिकेय जी की आरती करता है, उसके जीवन से भय, विघ्न और पराजय का अंत हो जाता है। यदि आप भी अपने जीवन में तेज, यश और विजय पाना चाहते हैं तो आज ही से Kartikeya Ji Ki Aarti का नित्य नियम बनाइए।
विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- कार्तिकेय जी की मूर्ति या चित्र को लाल फूलों से सजाएँ।
- दीपक जलाएँ और अगरबत्ती करें।
- उन्हें फल, नारियल, और नैवेद्य अर्पित करें।
- आरती शुरू करने से पहले कार्तिकेय जी का ध्यान करें।
- फिर श्रद्धा से पूरी आरती गाएँ।
- अंत में सभी को आरती दें और प्रसाद वितरित करें।
आरती के लाभ
- शत्रुओं पर विजय – कार्तिकेय जी की आरती करने से शत्रुओं का नाश होता है।
- साहस और आत्मविश्वास – आरती से व्यक्ति में साहस और आत्मबल की वृद्धि होती है।
- रोगों से मुक्ति – मानसिक और शारीरिक रोगों में लाभ मिलता है।
- कार्य में सफलता – अटके हुए कार्य शीघ्र पूर्ण होते हैं।
- बुद्धि और विवेक – विद्यार्थी वर्ग के लिए यह आरती विशेष फलदायी है।