खाद्य कीमतों में गिरावट से फरवरी में ब्याज दरों में कटौती संभव: रिपोर्ट का दावा

खाद्य कीमतों में गिरावट से फरवरी में ब्याज दरों में कटौती संभव
Shiv murti

भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल ही में मुद्रास्फीति से जुड़ी खबरों के बीच एक राहत भरी संभावना सामने आई है। आईसीआईसीआई बैंक की एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यदि जनवरी में खाद्य मुद्रास्फीति में अपेक्षित गिरावट आती है, तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) फरवरी में ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर सकती है। यह कदम आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए किया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य कीमतों में गिरावट नीति निर्माताओं को यह विश्वास दिला सकती है कि वर्तमान परिस्थितियों में दरों में ढील देना संभव है। इससे न केवल विकास को गति मिलेगी, बल्कि आम नागरिकों और उद्यमियों के लिए वित्तीय बोझ भी कम होगा।

खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट का प्रभाव

खाद्य मुद्रास्फीति पिछले कुछ महीनों से भारतीय अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनी हुई है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि जनवरी में खाद्य कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है। सब्जियों, दालों, और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में संभावित गिरावट के संकेत हैं, जो कुल मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति का मुख्य मुद्रास्फीति (कोर इंफ्लेशन) पर सीमित प्रभाव है। कोर इंफ्लेशन में स्थिरता का मतलब है कि दरों में कटौती से समग्र आर्थिक संतुलन नहीं बिगड़ेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्य कीमतों में गिरावट से न केवल आम लोगों को राहत मिलेगी, बल्कि यह व्यापार और उद्योगों के लिए भी फायदेमंद होगा। जब खाद्य मुद्रास्फीति कम होगी, तो उपभोक्ताओं की खर्च करने की क्षमता बढ़ेगी, जिससे आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी।

एमपीसी का नरम रुख

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की हालिया बैठक में नरम रुख का संकेत मिला। बैठक के मिनट्स के अनुसार, समिति के दो सदस्यों ने नीतिगत दरों में कटौती की वकालत की। उनका तर्क था कि विकास दर में नरमी और खाद्य मुद्रास्फीति का मुख्य मुद्रास्फीति पर सीमित असर इस कदम को समर्थन देने के लिए पर्याप्त है।

हालांकि, समिति के अन्य सदस्यों ने इस पर असहमति जताई और दरों को वर्तमान स्तर पर बनाए रखने के पक्ष में मतदान किया। उनका मानना था कि अभी दरों में कटौती का समय उचित नहीं है। हालांकि, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि आने वाले महीनों में यदि खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट जारी रहती है, तो यह दरों में कटौती के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान कर सकता है।

यह नरम रुख यह दर्शाता है कि आरबीआई की प्राथमिकता आर्थिक स्थिरता और विकास दोनों को बनाए रखना है।

आर्थिक विकास को मिलेगा समर्थन

रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि ब्याज दरों में कटौती से भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत मिल सकती है। यह कदम विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए फायदेमंद होगा जो अभी भी महामारी के प्रभाव से उबरने की कोशिश कर रहे हैं।

ब्याज दरों में कमी से उधारी की लागत घटेगी, जिससे व्यापार, उद्योग और घर खरीदने वालों के लिए वित्तीय बोझ कम होगा। इसके अलावा, यह कदम निवेशकों को अधिक सक्रिय बना सकता है, जिससे बाजार में नई ऊर्जा का संचार होगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि फरवरी में दरों में कटौती होती है, तो इससे भारत की जीडीपी वृद्धि को बल मिलेगा। यह कदम घरेलू मांग को भी बढ़ावा देगा, जो आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।

मुद्रास्फीति और विकास के बीच संतुलन की चुनौती

आरबीआई के लिए सबसे बड़ी चुनौती मुद्रास्फीति और विकास के बीच संतुलन बनाना है। मौद्रिक नीति समिति को यह सुनिश्चित करना होता है कि ब्याज दरों में किसी भी तरह का बदलाव मुद्रास्फीति पर नकारात्मक प्रभाव न डाले।

हालांकि, खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट की संभावना यह संकेत देती है कि फरवरी में दरों में कटौती करना सुरक्षित हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि आरबीआई इस दिशा में कदम उठाता है, तो इससे बाजार में सकारात्मक संदेश जाएगा।

उपभोक्ताओं के लिए राहत की उम्मीद

ब्याज दरों में कटौती से आम उपभोक्ताओं को सबसे अधिक लाभ होगा। इससे होम लोन, कार लोन, और अन्य प्रकार की उधारी सस्ती हो जाएगी। इसके अलावा, यह कदम बचत और निवेश पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा।

खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट से उपभोक्ताओं को पहले से ही राहत मिलेगी, और यदि ब्याज दरों में भी कमी आती है, तो यह घरेलू बजट के लिए और अधिक सहायक होगा।

खबर को शेयर करे
Shiv murti
Shiv murti