

इस बार संसद सत्र की शुरुआत ही हंगामे के साथ हुई। अदाणी मामला, जाॅर्ज सोरोस और आंबेडकर मुद्दे पर चर्चा के बजाय हंगामा देखने को मिला। इसका सीधा असर संसद के कामकाज पर पड़ा। राज्यसभा में केवल 40.03% और लोकसभा में 57.87% कामकाज हो पाया।

राज्यसभा: कामकाज के नाम पर हंगामा
राज्यसभा में शुक्रवार को एक देश एक चुनाव विधेयक के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में 12 सदस्यों को नामित किया गया। कार्यवाही की शुरुआत प्रदर्शन से हुई, जिसके कारण इसे कुछ देर के लिए स्थगित करना पड़ा। सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष और नेता सदन के साथ बैठक कर शांतिपूर्ण कार्यवाही की अपील की।
जब दोपहर 12 बजे कार्यवाही दोबारा शुरू हुई, तो विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जेपीसी के लिए नामित सदस्यों के प्रस्ताव को पेश किया, जिसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
सभापति ने जताई नाराजगी
अपने समापन भाषण में सभापति धनखड़ ने कहा कि इस सत्र में केवल 43 घंटे 27 मिनट काम हो सका। उन्होंने सांसदों को फटकार लगाते हुए कहा कि जनता हमें कड़ी आलोचना का सामना करने पर मजबूर कर रही है। व्यवधानों से लोकतांत्रिक संस्थानों पर जनता का विश्वास कम हो रहा है।
लोकसभा: ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पर हंगामा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर विपक्षी सांसदों ने लोकसभा में नारेबाजी की। इसके बीच ‘एक देश, एक चुनाव’ से जुड़े दो विधेयक – संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक 2024 को जेपीसी को भेजा गया।
स्पीकर ओम बिरला ने विधि मंत्री मेघवाल से प्रस्ताव पेश करने को कहा, जिसे हंगामे के बावजूद ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इसके बाद लोकसभा की कार्यवाही भी अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।
हंगामे का असर: जनता के सवाल और संसद की छवि
संसद सत्र के दौरान बार-बार होने वाले हंगामे और कम कामकाज ने देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता सांसदों से जवाबदेही की उम्मीद करती है, लेकिन बार-बार की अव्यवस्था से संसद की छवि धूमिल हो रही है।