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दासपारा गांव: 64 परिवारों की सफलता की प्रेरक कहानी

दासपारा गांव: 64 परिवारों की सफलता की प्रेरक कहानी
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उत्तर-पूर्व भारत के त्रिपुरा राज्य में स्थित सिपाहीजाला जिले का एक छोटा सा गांव, दासपारा, आज अपनी प्रेरणादायक उपलब्धियों के कारण पूरे देश और विदेशों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस गांव ने जैविक खेती, सौर ऊर्जा, और हरित तकनीकों का उपयोग कर एक नई सफलता की कहानी लिखी है।

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केवल 64 परिवारों का गांव, लेकिन बड़ा सपना


दासपारा में केवल 64 परिवार रहते हैं। इतनी छोटी आबादी के बावजूद, इस गांव ने आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है। यह गांव न केवल भारत का पहला बायो-विलेज बन गया है, बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त बन रहा है।

बायो-विलेज 2.0 पहल: शुरुआत और विस्तार


टिकाऊ विकास की दिशा में पहला कदम
त्रिपुरा जैव प्रौद्योगिकी निदेशालय ने 2018 में ‘बायो-विलेज 2.0’ पहल की शुरुआत की। इसका उद्देश्य था:

अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का उपयोग
पर्यावरण-अनुकूल खेती
टिकाऊ जीवनशैली का विकास
नई तकनीकों का समावेश
समय के साथ, इस प्रोजेक्ट में कई आधुनिक तकनीकों को जोड़ा गया, जैसे:

सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण


ऊर्जा-बचत करने वाले बिजली उपकरण
बायोगैस प्लांट
जैविक खेती के नए तरीके
हरित तकनीक का उपयोग: पर्यावरण और लागत में बचत
सौर ऊर्जा और बायोगैस का उपयोग
गांव में सौर ऊर्जा और बायोगैस प्लांट का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है।

सौर ऊर्जा से खेतों की सिंचाई होती है।
बायोगैस का इस्तेमाल खाना पकाने में किया जाता है, जिससे प्रदूषण घटा है।

जैविक खाद का उपयोग


ग्रामीणों ने रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग शुरू किया है। इससे:

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मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हुआ।
फसल उत्पादन बढ़ा।
खेती पर होने वाला खर्च कम हुआ।
आर्थिक सशक्तिकरण: बढ़ी ग्रामीणों की आय
टिकाऊ कृषि तकनीकों से लाभ
जैविक खेती और हरित तकनीकों के कारण:

प्रति परिवार औसतन ₹5,000 से ₹15,000 तक की अतिरिक्त आय हुई।
ग्रामीण अब मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, और जैव-खाद बनाने जैसे नए व्यवसायों में सक्रिय हैं।

सशक्त हुए ग्रामीण


नई तकनीकों ने न केवल आय बढ़ाई, बल्कि ग्रामीणों को आत्मनिर्भर भी बनाया।

स्वच्छ ऊर्जा से मिली स्वस्थ जीवनशैली
गांव में स्वच्छ हवा और ऊर्जा का योगदान
दासपारा गांव अब स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग के लिए एक आदर्श उदाहरण है।

बायोगैस ने खाना पकाने के लिए एक स्वच्छ विकल्प दिया।
सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप खेतों में पानी की आपूर्ति कर रहे हैं।
ऊर्जा-बचत करने वाले उपकरण बिजली की खपत कम कर रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण में योगदान
गांव ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम कर प्रदूषण में कमी लाई है।

अंतर्राष्ट्रीय पहचान: दासपारा का बढ़ता कद


दुनिया भर में सराही गई पहल
लंदन के एनजीओ ‘द क्लाइमेट ग्रुप’ ने दासपारा को पर्यावरण-अनुकूल तकनीकों के लिए दुनिया के दस सर्वोत्तम सिस्टम में से एक के रूप में मान्यता दी है।

त्रिपुरा सरकार की योजना
दासपारा की सफलता ने त्रिपुरा सरकार को 100 और बायो-विलेज बनाने की योजना बनाने के लिए प्रेरित किया। इनमें से 10 गांव पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं।

हरित विकास का संदेश


दासपारा गांव ने दिखाया है कि छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं। जैविक खेती, सौर ऊर्जा, और टिकाऊ जीवनशैली से यह गांव न केवल आत्मनिर्भर बना, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह कहानी हर गांव के लिए प्रेरणा है, जो हरित विकास के पथ पर चलना चाहते हैं।

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