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नाना पाटेकर के सिनेमा की शुरुआत में है इस एक्ट्रेस का अहम योगदान

नाना पाटेकर के सिनेमा की शुरुआत में है इस एक्ट्रेस का अहम योगदान
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नाना पाटेकर भारतीय सिनेमा के ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने अपनी बेहतरीन अभिनय कला से न सिर्फ दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बनाई, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अमिट छाप भी छोड़ी है। नाना का जन्म 1 जनवरी 1951 को मुंबई में हुआ था। वे न केवल एक शानदार अभिनेता हैं, बल्कि एक थिएटर कलाकार के रूप में भी उनकी विशेष पहचान है। उनका अभिनय सशक्त, प्रामाणिक और गहरे भावनाओं से भरपूर होता है, जिससे वे किसी भी फिल्म में अपनी उपस्थिति से एक नया आयाम जोड़ देते हैं।

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आज उनके जन्मदिन के मौके पर हम नाना पाटेकर के जीवन और फिल्मी सफर पर एक नजर डालते हैं और जानते हैं कि कैसे उन्होंने सिनेमा में कदम रखा। साथ ही, उन यादगार किस्सों और घटनाओं को भी याद करते हैं जिनके चलते नाना पाटेकर ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई।

नाना पाटेकर की फिल्मी शुरुआत और सिनेमा में कदम

नाना पाटेकर का फिल्मी सफर आसान नहीं था। उनका मन हमेशा से थिएटर और नाटकों की ओर खिंचता था। नाना का मानना था कि नाटक का मजा कुछ और ही होता है, क्योंकि वहां पर लाइव प्रतिक्रिया और दर्शकों का समीकरण सीधे जुड़ा होता है। यह उनके अभिनय के प्रति गहरे प्रेम का परिणाम था। लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उनका आगमन एक और दिलचस्प कहानी के साथ हुआ।

नाना पाटेकर खुद एक इंटरव्यू में बताकर बताते हैं कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में लाने वाली एक्ट्रेस स्मिता पाटिल थीं। नाना ने आमिर खान के साथ एक इंटरव्यू में कहा था, “स्मिता पाटिल की वजह से मैं फिल्म इंडस्ट्री में आया। वह मेरी हाथ पकड़कर मुझे फिल्मों में लेकर आई थीं। हम लोग नाटक के दौर में थे और मुझे नाटक करना बहुत पसंद था।” नाना पाटेकर की यह बात दर्शाती है कि उनकी सिनेमा में एंट्री एक तरह से नियति थी, और स्मिता पाटिल जैसे महान कलाकार का मार्गदर्शन उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में लाने में सहायक बना।

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नाना पाटेकर की प्रमुख फिल्में और अभिनय की शैली

नाना पाटेकर का करियर कई दशकों तक फैला हुआ है और उन्होंने अपनी अभिनय से दर्शकों को अनेक बार प्रभावित किया है। उनके करियर की कुछ सबसे यादगार फिल्में “परिंदा”, “क्रांतिवीर”, और “अग्निपथ” रही हैं। इन फिल्मों में नाना पाटेकर ने गहरी छाप छोड़ी और उनका अभिनय सशक्त और जटिल किरदारों के रूप में सामने आया।

फिल्म “परिंदा” (1989) में नाना पाटेकर के अभिनय को बहुत सराहा गया। उन्होंने एक गैंगस्टर का किरदार निभाया था, जो अपने भाई के मर्डर के बाद उसकी मौत का बदला लेने की सोचता है। इस फिल्म ने नाना पाटेकर को एक अलग पहचान दी और उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया। फिल्म “क्रांतिवीर” (1994) में भी उनका किरदार बहुत दमदार था, जहां उन्होंने एक योद्धा का किरदार निभाया। वहीं “अग्निपथ” (2012) में नाना ने विलेन का किरदार निभाया और उनकी दमदार एक्टिंग ने दर्शकों को उनका फैन बना दिया।

नाना पाटेकर की अभिनय शैली का अपना अलग ही आकर्षण है। वे हमेशा किरदार में पूरी तरह से डूबकर उसे जीते हैं। उनकी एक्टिंग में गहराई, ईमानदारी और सच्चाई दिखती है, जो उन्हें दूसरे कलाकारों से अलग बनाती है।

नाना पाटेकर की स्क्रिप्ट का चयन

नाना पाटेकर हमेशा अपने काम को गंभीरता से लेते हैं और स्क्रिप्ट का चुनाव करते समय उनका दृष्टिकोण काफी अलग होता है। वे अपनी बातों में कहते हैं, “एक सामान्य नागरिक के तौर पर मुझे क्या पसंद आएगा, वही मैं चुनता हूं। जब मुझे कोई स्क्रिप्ट सुनाई जाती है, तो मैं उस पर पूरा ध्यान देता हूं और कभी-कभी तो कहानी लिखने के समय भी मैं वहां रहता हूं।” नाना के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि स्क्रिप्ट में कुछ खास हो, जिससे वह किरदार को ठीक से समझ सकें और उसे सजीव कर सकें।

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नाना पाटेकर का मानना है कि एक बार स्क्रिप्ट को लॉक कर लिया जाए, तो फिर उसी किरदार की धुन में रहना पड़ता है। वे कहते हैं, “हम उसी भूमिका में रहते हैं और 6-8 महीने तक उसी किरदार को जीते हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई और किरदार हमारे अंदर रहता है।” नाना का यह तरीका उनकी गंभीरता और काम के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।

अवॉर्ड शो और नाना पाटेकर का दृष्टिकोण

नाना पाटेकर का हमेशा से यह मानना रहा है कि पुरस्कार उनकी प्राथमिकता नहीं हैं। उन्होंने एक बार कहा था, “मुझे अवॉर्ड इसलिए नहीं मिलता क्योंकि जूरी के कुछ सदस्यों से हमेशा मेरा झगड़ा होता है।” नाना का यह बयान उनके लिए पुरस्कारों की बजाय उनके अभिनय और कला के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है। वे मानते हैं कि उनके लिए फिल्म इंडस्ट्री और अपने काम में संतुष्टि महत्वपूर्ण है, न कि बाहरी मान्यता और पुरस्कार।

नाना पाटेकर ने अवॉर्ड शो को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए यह भी कहा, “मेरी ट्रेनिंग थिएटर में हुई है। मुझे मन की भड़ास निकालने के लिए स्टेज मिला था, और इसके लिए मुझे पैसे मिलते थे। तारीफें मिलती थीं, तो मैंने अपने बलबूते ही सब कुछ किया है।” यह उनके आत्मनिर्भर होने और अपने काम पर विश्वास करने की भावना को दर्शाता है। नाना का मानना है कि वह अपने अभिनय में जो आत्म-संतुष्टि महसूस करते हैं, वही उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है।

नाना पाटेकर का थिएटर से सिनेमा तक का सफर

नाना पाटेकर का अभिनय सफर थिएटर से शुरू हुआ था। उन्होंने भारतीय थिएटर में बहुत समय बिताया, जहां उन्होंने अपने अभिनय के बुनियादी पहलुओं को सीखा और निखारा। थिएटर ने उन्हें अपनी अभिनय शैली को मजबूत करने का अवसर दिया, और यही कारण है कि नाना की अभिनय में गहरी गंभीरता और प्रभावशीलता देखने को मिलती है। उनका थिएटर से सिनेमा तक का सफर उन्हें दर्शकों के बीच एक अलग पहचान दिलाने में मददगार साबित हुआ।

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