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पितृपक्ष में श्राद्ध का महत्व

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भारतीय संस्कृति में पितरों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है पितृपक्ष। यह हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आता है और कुल 15 दिनों का होता है। इस अवधि में श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व माना जाता है, जो हमारे पूर्वजों की आत्माओं की शांति और मोक्ष के लिए किया जाता है।

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श्राद्ध का महत्व:
श्राद्ध संस्कार हमारे पूर्वजों की आत्माओं को सम्मान और श्रद्धांजलि देने का एक धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान है। हिंदू धर्मशास्त्रों में माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसकी आत्मा यमलोक जाती है। वहां उसकी मुक्ति और शांति के लिए परिजनों द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म आवश्यक होते हैं। श्राद्ध का उद्देश्य उन पितरों की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष प्रदान करना होता है।

इसके साथ ही, श्राद्ध कर्म से यह विश्वास जुड़ा हुआ है कि पितर आशीर्वाद प्रदान करते हैं और इससे घर में सुख-शांति, समृद्धि और उन्नति होती है। पितरों की संतुष्टि से वंशजों के जीवन में कठिनाइयाँ दूर होती हैं और उन्हें अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त होती है।

श्राद्ध क्यों करना चाहिए:

  1. धार्मिक कर्तव्य: हिंदू धर्म में श्राद्ध को एक प्रमुख धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। इसे न करना पाप का भागी बनने जैसा माना जाता है।
  2. पूर्वजों का ऋण: हमारे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है, वह हमारे पूर्वजों की मेहनत और आशीर्वाद का फल है। श्राद्ध कर्म उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का साधन है।
  3. कर्मफल सिद्धांत: हिंदू धर्म में कर्म और उसका फल महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों की आत्माओं को श्राद्ध के माध्यम से तृप्ति मिलती है, और उनके आशीर्वाद से हमारे कर्म सफल होते हैं।
  4. पारिवारिक समृद्धि: श्राद्ध के माध्यम से हम अपनी पीढ़ियों के बीच एक स्थायी संबंध बनाए रखते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी जड़ें कहां हैं और हमें पारिवारिक परंपराओं का पालन क्यों करना चाहिए।
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श्राद्ध का विधि-विधान:
श्राद्ध कर्म में मुख्य रूप से तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन का आयोजन होता है। तर्पण में जल, तिल और कुश से पितरों को जल अर्पित किया जाता है। पिंडदान में चावल और आटे के पिंड बनाकर उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान दिया जाता है।


पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इससे हमें अपनी जड़ों को याद रखने और जीवन में विनम्रता एवं कृतज्ञता के महत्व को समझने में सहायता मिलती है। श्राद्ध, पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, जो हमें आत्मिक शांति और पारिवारिक सुख-समृद्धि की ओर ले जाता है।

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