योगी सरकार ने सारनाथ के कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र का किया पुनर्विकास 

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सरकार गंगा की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत रखने तथा गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने का निरंतर कर रही प्रयास 

सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र,भारत की जलीय जैव विविधता का बना महत्वपूर्ण सेंटर  

2017 से नमामि गंगे योजना में कछुआ पुनर्वास केंद्र के शामिल होने से कछुओं की तस्करी आदि में आई कमी 

2017 से 2025 तक में 3,298 कछुओं का किया गया पुनर्वास 

कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र में पिछले आठ वर्ष में 3231 अंडों की हैचिंग करके विभिन्न नदियों में छोड़ा गया

वाराणसी, 22 मई: योगी सरकार ने सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र का पुनर्विकास किया है,जिससे नदी की पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत रहे और गंगा को प्रदूषण मुक्त रखा जा सके। सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र, भारत की जलीय जैव विविधता का महत्वपूर्ण सेंटर बनता जा रहा है, जो गंगा नदी बेसिन में संरक्षण की सफलता का शानदार उदाहरण बनकर उभरा है। 2017 से नमामि गंगे में कछुआ पुनर्वास केंद्र के शामिल होने से कछुओं की तस्करी आदि में भी कमी आई है। 
 
वाराणसी मण्डल के मुख्य वन संरक्षक डॉ.रवि कुमार सिंह ने बताया कि कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र में पिछले आठ वर्ष में 3231 अंडों की हैचिंग करके विभिन्न नदियों में छोड़ा गया। सरकार के प्रयासों से तस्करी आदि से बचाकर वर्ष 2017 से 2025 में अभी तक कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र ने 3298 से कछुओं का पुनर्वास किया है, जो भारत के सबसे बड़े ऐसे अभियानों में से एक माना जा रहा  है।

मुख्य वन संरक्षक बताते हैं कि सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र गंगा कार्य योजना के तहत 1978 में स्थापित और बाद में 1989 में वाराणसी में कछुआ अभयारण्य की घोषणा की गई थी। 2000 के दशक की शुरुआत में, केंद्र को कई परिचालन और बुनियादी ढांचे की समस्याओं का सामना करना पड़ा। 2017 में  इस दिशा में बड़ा परिवर्तन हुआ, जब डबल इंजन की सरकार ने नमामि गंगे कार्यक्रम के घटक IV-बचाव और पुनर्वास में शामिल कर लिया, यह उत्तर प्रदेश वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) का संयुक्त प्रयास था। इस वक़्त ये केंद्र हजारों मीठे पानी के कछुओं के संरक्षण, पुनर्वास और रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 

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2017 से कछुओं के तालाबों को फिर से डिजाइन किया गया। उन्नत जैव-फिल्टरेशन और वातन प्रणाली स्थापित की गई। लॉग, जलीय वनस्पति, हॉल- आउट मैट और धूप सेंकने के प्लेटफ़ॉर्म जैसे प्राकृतिक सामान लगाए गए। किशोर कछुओं के लिए अलग से तालाब बनाए गए, जबकि बड़े कछुओं (50 किलोग्राम) तक को नए पुनर्निर्मित तलाबों में रखा गया। कछुआ के पसंदीदा आहार को ध्यान में  रखते हुए अब मांसाहारी के लिए जीवित मछली, शाकाहारी के लिए पौधे की सामग्री और सर्वाहारी के लिए मिश्रित आहार शामिल किया गया है। अब कछुओं को कठोर चिकित्सा और व्यवहार संबंधी मूल्यांकन के बाद ही गंगा में छोड़ा जाता है, जिससे दीर्घकालिक अस्तित्व और पारिस्थितिकी तंत्र एकीकरण सुनिश्चित हो सके। परिणामस्वरूप, सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र कछुओं के संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय मॉडल बनता जा रहा है।