हमारे वेदों में प्रकृति के प्रत्येक तत्व को देवता का रूप माना गया है, अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश और वायु। इन्हीं में से एक है वायु देव, जिनका संबंध हमारे प्राण और जीवन ऊर्जा से है। आज हम बात करेंगे वायु गायत्री मंत्र की, जो न केवल श्वास प्रणाली को संतुलित करता है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि में भी सहायक होता है। यह मंत्र उन साधकों के लिए अमूल्य रत्न है, जो योग, ध्यान या प्राणायाम के माध्यम से भीतर की शक्ति को जागृत करना चाहते हैं।
वायु गायत्री मंत्र
ॐ वायवे विद्महे वायुरूपाय धीमहि ,
तन्नो वायुः प्रचोदयात्।
वायु गायत्री मंत्र न केवल हमारे श्वसन तंत्र को शुद्ध करता है, बल्कि हमारे आंतरिक जीवन को भी नई ऊर्जा से भर देता है। जो भी श्रद्धा से इस मंत्र का जप करता है, वह स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और आत्मिक आनंद प्राप्त करता है। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा, तो आप सूर्य गायत्री मंत्र, जल गायत्री मंत्र, अग्नि गायत्री मंत्र और प्राणायाम के साथ मंत्र जाप जैसे अन्य मंत्रों को भी अवश्य पढ़ें।
गायत्री मंत्र जप की विधि
- शुद्ध स्थान और मनःस्थिति:
मंत्र जप के लिए प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम माना गया है। शांत और स्वच्छ स्थान पर आसन लगाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। - स्नान और पवित्रता:
स्नान करने के पश्चात शुद्ध वस्त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि आप कितनी बार जप करेंगे (जैसे 108 बार)। - जप की प्रक्रिया:
अब आंखें बंद करें, लंबी श्वास लें और पूरे श्रद्धा-भाव से “ॐ वायवे विद्महे वायुरूपाय धीमहि तन्नो वायुः प्रचोदयात्” मंत्र का जप करें। माला का उपयोग करना श्रेष्ठ होता है। - ध्यान और प्रार्थना:
मंत्र जप के बाद वायु देवता का ध्यान करें और उनसे स्वास्थ्य, मन की शांति व सकारात्मक ऊर्जा की प्रार्थना करें।
मंत्र जप के लाभ
- प्राणशक्ति में वृद्धि:
यह मंत्र हमारे शरीर में स्थित प्राणवायु को संतुलित करता है, जिससे थकान, आलस्य और मानसिक जड़ता दूर होती है। - मानसिक शांति:
नियमित जप से मानसिक बेचैनी, तनाव और चिंता में कमी आती है। यह ध्यान व एकाग्रता को बढ़ाता है। - स्वास्थ्य लाभ:
श्वसन प्रणाली मजबूत होती है, फेफड़े शुद्ध होते हैं, और अस्थमा जैसी बीमारियों में राहत मिलती है। - आध्यात्मिक उन्नति:
मंत्र के जप से व्यक्ति के भीतर सात्त्विकता आती है, जिससे साधना में प्रगति होती है और आत्मा का परमात्मा से जुड़ाव गहरा होता है।