ग्रामीणों ने बताया कि डीडीए की ओर से आए दिन बुलडोजर चलाए जाते हैं, जिससे उनकी खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं। खेतों पर बनी झोपड़ियां भी गिरा दी जाती हैं, जिससे ग्रामीणों की आजीविका पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। कृषि भूमि का म्यूटेशन भी लंबित है, जिसके चलते जमीन कानूनी रूप से उनके नाम नहीं हो पा रही है।
बुनियादी सुविधाओं का अभाव
गांव में न तो कोई सरकारी स्कूल है और न ही स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। ग्रामीणों को शिक्षा और इलाज के लिए दूसरे इलाकों पर निर्भर रहना पड़ता है। जोधा सिंह का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे आजादी के बाद भी उनका गांव विकास से कोसों दूर है।
पंचायत घर का विकल्प नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि विकास के नाम पर पंचायत घर को मेट्रो परियोजना के लिए तोड़ दिया गया, लेकिन उसका कोई विकल्प नहीं बनाया गया। इस वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शादी-विवाह जैसे आयोजनों के लिए गांव वालों को दूर जाकर भारी खर्च करना पड़ता है।
सीवर की समस्या से बढ़ा संकट
गांव में सीवर व्यवस्था बेहद खराब है। आए दिन सीवर ओवरफ्लो होने से गलियां और सड़कें पानी से भर जाती हैं। बरसात के समय स्थिति और गंभीर हो जाती है, जिससे बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। इससे न केवल आवागमन बाधित होता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं।
कृषि भूमि पर विवाद और नुकसान
कृषि भूमि को लेकर ग्रामीणों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। मुआवजा सही से नहीं मिलने और फसलें नष्ट होने से उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। डीडीए द्वारा सही पैमाइश न करने और भूमि पर कब्जा करने की कोशिशें भी ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई हैं।
इतिहास में बसावट और विस्थापन की कहानी
नंगली रजापुर गांव के निवासियों को यमुना नदी के पास से कई बार विस्थापित किया गया। वर्ष 1934 में उन्हें दोबारा बसाया गया और 64 परिवारों को प्लॉट दिए गए। हालांकि, कानूनी अड़चनों के चलते ये प्लॉट आज तक रजिस्ट्री नहीं हो पाए।
मुख्य मार्ग और यातायात की समस्या
गांव के मुख्य मार्ग पर रेहड़ी-पटरी वालों का कब्जा और अव्यवस्थित यातायात ने जाम की समस्या खड़ी कर दी है। ग्रामीणों को गांव से बाहर जाने में घंटों लग जाते हैं, जिससे उनका रोजमर्रा का जीवन कठिन हो गया है।
ग्रामीणों की प्रशासन से गुहार
ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से अपनी समस्याएं साझा कीं, लेकिन उनकी आवाज अनसुनी कर दी गई। म्यूटेशन की प्रक्रिया आरंभ न होने के चलते उन्हें अपने खेतों का मालिकाना हक नहीं मिल पा रहा।
विकास के अभाव में परेशान ग्रामीण
सुल्तान सिंह का कहना है कि गांव में न पार्क है और न ही चौपाल। ऐसे में सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों के लिए उन्हें दूसरे स्थानों का सहारा लेना पड़ता है।