भारतीय ज्योतिषशास्त्र में शनि देव को न्याय का देवता माना गया है। वे कर्मों का फल देने वाले हैं और जीवन में अनुशासन, संघर्ष और धैर्य का पाठ सिखाते हैं। जब किसी की कुंडली में शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती या अशुभ स्थिति होती है, तो जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं। ऐसे में “शनि बीज मंत्र” का जप एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय माना गया है। यह न केवल शनि के दुष्प्रभाव को कम करता है, बल्कि आत्मबल, संयम और स्थिरता भी प्रदान करता है।
शनि बीज मंत्र
|| ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ||
शनि बीज मंत्र न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत फलदायी है। जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा और विधिपूर्वक इस मंत्र का जप करता है, उसे शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आप अपने जीवन से बाधाओं, रोगों और संघर्षों को दूर करना चाहते हैं, तो नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करें और शनि देव की कृपा का अनुभव करें।
शनि बीज मंत्र जप विधि
- शनिवार के दिन प्रातः स्नान कर काले वस्त्र धारण करें।
- एक शांत एवं स्वच्छ स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- अपने सामने शनिदेव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- काले तिल, सरसों का तेल और नीले फूलों से पूजा करें।
- लोहे की थाली में दीपक जलाएं।
- रुद्राक्ष की माला से मंत्र का जप करें।
- कम से कम 108 बार मंत्र का जप करें।
- जप के बाद शनि चालीसा का पाठ करें।
- शनिदेव से क्षमा प्रार्थना करते हुए आशीर्वाद मांगें।
शनि बीज मंत्र जप के लाभ
- शनि के दोषों की शांति – कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति को शांत करता है।
- कर्म सुधार – जीवन में पूर्वजन्म या वर्तमान जन्म के दुष्कर्मों से मुक्ति दिलाता है।
- साहस और आत्मबल – मानसिक दृढ़ता और धैर्य को बढ़ाता है।
- रोगों से मुक्ति – विशेषकर वात और हड्डी संबंधी रोगों में लाभकारी है।
- कानूनी समस्याओं से राहत – मुकदमेबाजी, कोर्ट-कचहरी से संबंधित मामलों में सहायक।
- धन की स्थिरता – धन हानि से बचाता है और आर्थिक स्थिति को संतुलित करता है।