

सनातन धर्म में भगवान विष्णु को पालनकर्ता के रूप में पूजा जाता है। वे भक्तों के जीवन को संतुलन, शांति और समृद्धि से भरते हैं। ‘विष्णु भगवान की आरती’ केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का एक सुंदर माध्यम है। इस लेख में हम आपको विष्णु जी की आरती के महत्व, उसकी विधि और उससे मिलने वाले लाभों के बारे में बताएंगे, ताकि आपकी भक्ति और भी अधिक सजीव हो सके।

विष्णु भगवान की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
श्री बृहस्पतिवार की आरती- ॐ जय बृहस्पति देवा-
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
श्री बृहस्पतिवार की आरती, ॐ जय बृहस्पति देवा।
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
विष्णु भगवान की आरती न केवल एक साधना है, बल्कि यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की सीढ़ी है। यदि आप भी अपने जीवन में विष्णु कृपा चाहते हैं तो प्रतिदिन श्रद्धा और नियम से आरती करें। और भी अधिक भक्ति भाव हेतु आप ‘श्री हरि स्तुति’, ‘श्री विष्णु सहस्रनाम’, ‘लक्ष्मी नारायण भजन’ और ‘हरि ओम ध्यान मंत्र’ जैसे भजनों को भी जरूर पढ़ें।
विष्णु भगवान की आरती की विधि
- सुबह या शाम को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- विष्णु जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- चंदन, फूल, धूप, नैवेद्य अर्पण करें।
- घी का दीपक हाथ में लेकर आरती करें।
- घंटी बजाते हुए आरती गाएं।
- अंत में आरती को सभी घरवालों के बीच घुमाकर हाथ जोड़ें।
विष्णु भगवान की आरती के लाभ
- मानसिक शांति मिलती है – आरती के दौरान भक्त का मन स्थिर और शांत हो जाता है।
- पापों का नाश होता है – नियमित आरती करने से जीवन के पाप नष्ट होते हैं।
- घर में सुख-समृद्धि आती है – आरती से घर का वातावरण सकारात्मक और मंगलमय बनता है।
- ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है – भगवान विष्णु की आरती से जीवन में उनके आशीर्वाद की अनुभूति होती है।
- संकटों से मुक्ति मिलती है – आरती से संकट और कष्ट धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।