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उत्तर प्रदेश में भगदड़ की घटनाएँ समय-समय पर गंभीर परिणामों के साथ सामने आई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं:

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  1. प्रतापगढ़ की घटना (4 मार्च 2010):
    4 मार्च 2010 को प्रतापगढ़ के कुंडा में संत कृपालु महाराज के आश्रम में थाली और कंबल वितरण के दौरान बड़ी भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में 63 लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इस घटना ने प्रशासन और आयोजनकर्ताओं की सुरक्षा प्रबंधों की कमी को उजागर किया। इस दिन बड़ी संख्या में लोग आश्रम में पहुंचे थे, लेकिन भीड़ को संभालने के लिए उचित इंतजाम नहीं किए गए थे, जिससे यह दुखद हादसा हुआ।
  2. कुंभ मेले की घटना (10 फरवरी 2013):
    10 फरवरी 2013 को इलाहाबाद में आयोजित कुंभ मेले के दौरान रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मच गई। इस हादसे में 36 लोगों की जान चली गई और करीब 40 लोग घायल हो गए। इस भगदड़ का मुख्य कारण स्टेशन पर अत्यधिक भीड़ और व्यवस्थापकों की असफलता थी। कुंभ मेले के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु वहां आते हैं, और इस बार भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। भीड़ के प्रबंधन में प्रशासन की लापरवाही ने इस हादसे को और भी गंभीर बना दिया।
  3. वाराणसी की घटना (19 नवंबर 2019):
    19 नवंबर 2019 को वाराणसी में जयगुरुदेव समागम के दौरान भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में 14 लोगों की मौत हो गई जबकि 60 लोग घायल हो गए। यह घटना भी भीड़ के प्रबंधन में लापरवाही का परिणाम थी। समागम में शामिल होने के लिए भारी संख्या में लोग आए थे, लेकिन उन्हें संभालने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए थे। इस घटना ने एक बार फिर से आयोजकों और प्रशासन की तैयारी पर सवाल खड़े कर दिए।
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इन घटनाओं ने साफ दिखा दिया कि बड़े आयोजनों में भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा इंतजामों की बेहद जरूरत है। प्रशासन और आयोजनकर्ताओं को ऐसे कार्यक्रमों में पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी दुःखद घटनाओं से बचा जा सके। सुरक्षित भीड़ प्रबंधन, आपातकालीन निकासी योजना, और पर्याप्त सुरक्षा कर्मियों की तैनाती जैसे उपाय आवश्यक हैं ताकि लोगों की जान और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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