सामाजिक चुनौतियों और समस्याओं का हल सुभाष के विचारों से निकलेगा
शक्ति और नैतिकता के बल पर सुभाष ने दिलाई आजादी
सुभाष होते तो अखंड भारत का दायरा बढ़ता, पुराने नख्शे वाला भारत मिलता
सुभाष को दरकिनार करने से बढ़ी भारत की मुश्किलें
जिन देशों से सुभाष के सम्बन्ध थे, आज भी हमारे देश के रिश्ते अच्छे
जौनपुर में खुलेगा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस शोध केंद्र
गाजीपुर में भी बनेगा सुभाष मन्दिर
वाराणसी, 23 जनवरी। सुभाष ने भारतीयों के अंदर निडरता, त्याग, पराक्रम जैसी भावनाओं को भर दिया। देश को बचाने के लिए शक्ति और नैतिकता का संगम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कराया। आजादी के ऐसे महानायक जिन्होंने भेदभाव रहित समाज को बनाने पर जोर दिया। नेताजी के विचारों पर देश चला होता तो कभी बांग्लादेश नहीं बनता और किसी कीमत पर विभाजन नहीं होता।
भारतीय इतिहास के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्मदिन पर विशाल भारत संस्थान द्वारा 5 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सुभाष महोत्सव के तीसरे दिन विश्व के पहले सुभाष मन्दिर को फूल मालाओं से सजाया गया। भारत के महान पराक्रम के प्रतीक पुरुष नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को 23 किलो की माला मुख्य अतिथि विजय कुमार मौर्य एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार ने अर्पित किया, तो जय हिन्द, जय सुभाष के नारों से काशी गूंज गयी। 5 नारियल से महानायक सुभाष का अभिषेक किया गया। बाल आजाद हिन्द बटालियन ने सलामी दी। इन्द्रेश कुमार ने मशाल जलाकर दुनिया को यह संदेश दिया कि हम भेदभाव रहित समाज बनाने की दिशा में अग्रसर हैं, जो सुभाष का सपना था। लोकगीत और संगीत के माध्यम से भारत के महान सपूत को याद किया गया। देशभक्ति गीतों पर झूमे युवा। शहर के विभिन्न भागों से जत्थे के रुप में तिरंगा झंडा लेकर जय हिन्द, जय सुभाष का नारा लगाते हुए युवा सुभाष मन्दिर की ओर बढ़ रहे थे। ऐसा लग रहा था कि देश को आजाद कराने वाली आजाद हिन्द फौज के सिपाही अपने सेनापति से मिलने जा रही हो। कृतज्ञ राष्ट्र अपने महानायक के सम्मान में कोई कसर न छोड़े, इसके लिए विशाल भारत संस्थान ने पूरी तैयारी की थी। परम पावन सुभाष चन्द्र बोस की पावन प्रतिमा को होमगार्ड के जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
विशाल भारत संस्थान द्वारा पुलिस महानिदेशक (होमगार्ड) बिजय कुमार मौर्य को सद्भाव के राजदूत की उपाधि से विभूषित किया गया। मुख्यवक्ता इन्द्रेश कुमार ने उपाधि पत्र देकर एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
अन्तर्राष्ट्रीय सुभाष महोत्सव के मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक (होमगार्ड) बिजय कुमार मौर्य ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपने साहस, शौर्य और पराक्रम से अंग्रेजी साम्राज्य की चूलें हिलाकर रख दी। महाभारत, गीता, विवेकानन्द के विचारों से प्रभावित नेताजी ने देश को आजाद कराने के लिये अपना सर्वस्व निछावर कर दिया। सर्वस्व त्याग और शक्ति के द्वारा ही देश की रक्षा की जा सकती है। परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति को अपने विचारों को बदलना पड़ता है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपनी दूर दृष्टि से यह समझ चुके थे कि सैन्य ताकत, वैदेशिक कूटनीति के द्वारा ही हमें आजादी मिलेगी। आजाद हिन्द फौज का गठन इसी उद्देश्य से किया गया। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के पहले ही 1943 में ही नेताजी ने देश को आजाद करा दिया था। देश की आजादी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आजाद हिन्द फौज के बलिदान से मिली है। हमें देश की सेनाओं का सलाम करना चाहिये। एकता, आत्मविश्वास और आत्म बलिदान ही हर भारतीय की पहचान है।
महोत्सव के मुख्यवक्ता एवं उद्घाटनकर्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सुभाष ने अखंड भारत को एक सूत्र में बांधने के लिये कभी तुष्टिकरण का सहारा नहीं लिया, उन्होंने देश को सर्वोपरि रखा। देशभक्ति की भावना का आधार त्याग को बनाया, जिससे लोगों को देश के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया। नेताजी के इतिहास को छुपाने के बजाय उजागर करने और उनके मार्ग पर चलने का प्रयास किया गया होता, तो आज न देश बंटता और न नफरत फैलती। भारत को सुभाष मिल जाते तो भारत का स्वर्णिम काल शुरू हो जाता। भूख मुक्त भारत होता, महिलाओं का सम्मान होता। सुभाष के एकीकरण का मॉडल होता तो कोई हिन्दू मुसलमान का नाम नहीं लेता। 30 दिसम्बर 1943 को पोर्ट ब्लेयर में झंडा लहराकर आजाद भारत की घोषणा कर दी। सुभाष के पीछे भारतीयों का पागलपन था, इसलिए भारतीय अंग्रेजों की सेना में न जाकर आजाद हिन्द फौज में जाते थे। अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से जिन्ना और नेहरू को भड़काकर देश के टुकड़े कर दिए। सुभाष के सपने को पूरा करने के लिए यह शपथ दिलाई गई कि भले ही जन्मे खंडित भारत में, लेकिन मृत्यु हो अखंड भारत में। सुभाष होते तो विभाजन ही नहीं होता। अगर विभाजन होता भी कुछ समय बाद फिर से भारत एक हो जाता। अपने पूर्वजों पर जाएंगे तो पूर्वज सांझे मिलेंगे। विदेशी आक्रांताओं ने जुल्म किया मन्दिर तोड़े तो आज हम क्यों लड़ रहे हैं। अब मुसलमानों में यह बात निकली है कि जहां मस्जिद में टूटी मूर्तियां मिलेगी वह हिन्दुओं को वापस दे देंगे। इबादत बदली है लेकिन न पुरखे बदले, न पहचान बदली। आज सुभाष होते तो नफरत खत्म हो जाती और खूबसूरत हिन्दुस्तान बनता। देश के अंदर वक्फ बोर्ड की जद्दोजहद चल रही है। मुसलमान खुद ही कह रहा है कि यह बोर्ड नहीं यह भू माफिया हैं। मुस्लिम विद्वानों ने खुद कहा कि वक्फ बोर्ड की कोई जरूरत नहीं है। सब अपने ट्रस्ट बनाये और अपने प्रॉपर्टी की देखभाल करे। वक्फ की संपत्ति का रख रखाव पारदर्शी हो। हजारों लोगों ने वक्फ बिल में सुधार के लिये हाथ खड़ाकर अपना समर्थन दिया। सुभाष की तरह जिस दिन दहाड़ेंगे, उस दिन बांग्लादेश को अल्पसंख्यक पर जुल्म करने में रूह कांप जाएंगी। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के सपनों का भारत अखण्ड एवं स्वर्णिम भारत का समाज भेदभाव रहित, शिक्षा सम्पन्न, भूख रहित, सुखी एवं समृद्ध भारत होता। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बलिदान ने करोड़ों देशभक्तों को खड़ा कर दिया है, जो अखण्ड भारत के सपने को पूरा करेंगे। हमारा जन्म भले ही खंडित भारत में हुआ हो, किन्तु हमारी मृत्यु अखण्ड भारत में हो। दंगा मुक्त समाज, शांतिमय समाज एवं शक्तिशाली समाज का निर्माण होगा। भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जड़ें एक है। हमारे पूर्वज, परम्पराएं, खून, खानदान सब एक है। हमने मजहब बदल लिया लेकिन हमारे वतन, पुरखें, पहचान सब एक है। सामाजिक समरसता को खत्म करने वाले राजनीतिक नेताओं को कटाक्ष किये। हमारे आदर्श राम, कृष्ण, दाराशिकोह हैं। वक्फ बोर्ड अमेंडमेंट बिल का हमे स्वागत करना चाहिये। सभी के विचारों का सम्मान करते हुए एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करने की जरूरत है।
अध्यक्षता कर रहे प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रामाशीष सिंह ने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का योगदान केवल आजादी के लिये ही नहीं हैं, बल्कि देश में सांस्कृतिक स्थापना के लिये भी है। नेताजी अगर हमारे बीच में होते तो देश का विभाजन नहीं होता। समाज कठोर कानून से नहीं, बल्कि धर्म स्थापना से चलता है। बड़े-बड़े अपराध धर्म के कारण ही रुके हुए हैं। हमें संविधान का भी सम्मान करना चाहिये। विवेकानन्द के जीवन एवं नेताजी के जीवन में काफी साम्य है। शक्ति और अध्यात्म के द्वारा ही देश की रक्षा की जा सकती है।
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा की देश को आजाद कराना ही नहीं, बल्कि देश को शीर्ष पर पहुँचाना, गुलाम मानसिकता से मुक्ति दिलाना, हर भारतीय के अंदर शौर्य भरना सुभाष बाबू का उद्देश्य था। आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों की खटिया खड़ी कर दी, उनके खिलाफ ऐसा वातावरण बना जिससे वे भारत के अलावा अन्य एशियाई देशों को भी आजाद करने के लिये बाध्य हो गए।
संचालन डॉ० अर्चना भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद मयंक श्रीवास्तव ने दिया। इस अवसर पर डॉ० कवीन्द्र नारायण, गुलाब श्रीवास्तव, ज्ञान प्रकाश, डॉ० मृदुला जायसवाल, डॉ० नजमा परवीन, नाजनीन अंसारी, आभा भारतवंशी, नौशाद अहमद दूबे, कुंअर नसीम रजा सिकरवार, विवेकानन्द सिंह, सत्यम राय, सौरभ पाण्डेय, सत्यम सिंह, शिवशरण सिंह, श्रियम सिंह, आकाश यादव, धनंजय यादव, मृत्युंजय यादव, शंकर पाण्डेय, बृजेश श्रीवास्तव, देवेन्द्र नाथ सिंह, शंकर बोस, शहाबुद्दीन जोसेफ, दीपक, अशोक, संस्कृति उपाध्याय, द्वारिका प्रसाद, डॉ० अंजली यादव, इली भारतवंशी, खुशी भारतवंशी, उजाला भारतवंशी, दक्षिता भारतवंशी, नूर नवाज, मो० इस्माइल, हाजी मुहम्मद रमजान, फैय्यज अहमद आदि सैकड़ों लोग मौजूद रहे।