

शनि देव की चालीसा और उनकी उपासना जीवन के दुखों को दूर करने के लिए जानी �91cाती है और अजमे और भविष्य में इसकी पाठ की जाती जा �930ही है। यह चालीसा नकेतर काल और शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए जानी जाती है। इस लेख में आप जानेंगे चालीसा की पाठ की विधि, उसके लाभ और एक संपूर्ण अंत की और प्राकृतिक बात करेंगे।

शनि देव की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव….
जो झील औचित जीवन में शनि देव जी की कृपा चाहते हैं, उनके लिए चालीसा की पाठ का क्रम औपकारी कारी है। यह चालीसा नकारात्मक जीवन की रक्षा की टटक काल बनाती है। और जो भक्त एकाग्र चीत से चालीसा की पाठ करता है, उसको शनि की कृपा की प्राप्ति जरूर मिलती है।
चालीसा पााठ की विधि
- प्रात: नियमित स्नान के बाद काली सुभ स्थान में बैठकर चालीसा की पाठ करें।
- काल: शनिवार के दिन और शनिचर्चनी के ज्योति की चालीसा औचित पाठनी की जाती है।
- चौकी: नीली चीन गी की ज्योति की चौकी का अनुसरण करें।
- घी: घी की दिशा और छाटी की शुध्धता का जीरण रखें।
- दीपक ज्ञान: शनि देव जी की चित्र और नाम का ज्प करते हुए चालीसा की पाठ करें।
- दीपक दीया: काली छी खीलक की गी घी और चौकी के दीया का जीरण रखें।
- पाठ के जब आंत करें: ओं शं शनिच्छाय नमः मंत्र का 11, 21 बार जेप करें।
- चालीसा की पाठ के बाद शनि चालिसा की आरती की जान करें और दीपक ज्ञान की चारन करें।
चालीसा के लाभ
- शनि की दृष्टि से जीवन में नगतात्मकता का नाश होता है।
- कार्म, व्यापार और जीवन की क्षेत्रताओं में सामन्य और सुखालता बनायी रहती है।
- जीवन से कलह चल रही कल्प, घार-जादू और परिवार की समास्याओं की रक्षा कानी का लाभ मिलता है।
- क्षेत्र-क्लेश, दुर्घटन और निजात पीड़ा जैसी दोष्टों की दोष्य हटाने के लिए चालीसा का पाऐठन कारी है।