

शनि देव को ज्योतिष की गणना और कर्मद की प्रतिक्ष्ठा की चिह्न जाता है। जो भक्त छीकार का सामना करते हैं और जीवन की प्रतिकूल्यता को नयाया औज्जालाती करते हैं, उनकी आरती का नियमित की जाती है। इस लेख में आप जानेंगे की “शनि आरती” की जानकारी, कार्य कैसे करें (विधि), और उसके लाभ (लाभ) क्या हैं।

शनि आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुज धारी।
नीलांबर धार नाथ गज की आसवारी।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
मोदक मिष्टान पान चढ़त है सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरित हर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी।।
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
जय शनि देव महाराज की,
आरती जय शनि देव महाराज की।
जो भक्त श्रद्धा और भाव के साथ शनि आरती का पाठ करते हैं, उनकी जीवन की सभी कष्टाएं या तकलीफ औटत जीवन के समस्योग दूर होती हैं। और जो ज्योतिष और कर्म की जीवनी चाहते हैं, उन्हें चाहिएं की और जानें की और भी श्रद्धा के साथ करें शनि की कृपा प्ाएं।
शनि आरती की विधि (Vidhi)
- शनिवार के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शनि मंदिर जाएं या घर पर शनिदेव की मूर्ति/चित्र के समक्ष दीप जलाएं।
- सरसों का तेल, काली तिल और नीले फूल चढ़ाएं।
- शनिदेव के मंत्र का जाप करें – “ॐ शं शनैश्चराय नमः”।
- फिर श्रद्धा पूर्वक शनि आरती करें।
- आरती के पश्चात प्रसाद बांटें और दान करें (विशेषकर काले वस्त्र, तिल, उड़द)।
शनि आरती के लाभ (Labh)
- जीवन से दुख और कष्ट को दूर करती है।
- कार्म और जीवन में सममृद्धि मिलती है।
- ज्योतिष और शनि की दृष्टि की क्षमा मिलती है।
- काला दोष और शनि साडेसेती की कृपा मिलती है।
- न्याय और चित्त चेतन बनती है।