शैलपुत्री माता की आरती, शक्ति की अभिव्यक्ति और भक्ति का प्रतीक है। शैलपुत्री माता देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक हैं, और इनकी पूजा का विशेष महत्व होता है। शैलपुत्री माता का स्वरूप बहुत ही शांत और पवित्र होता है। इनकी पूजा से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है। खासतौर पर नवरात्रि के समय शैलपुत्री माता की आरती का विशेष महत्व है, जब भक्त श्रद्धा से उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस आरती को गाते हैं। यह आरती न केवल भक्तों के मन को शांति देती है, बल्कि उन्हें आंतरिक बल और साहस भी प्रदान करती है।
शैलपुत्री माता आरती
शैलपुत्री माँ बैल असवार।
करें देवता जय जय कार॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावें।
जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू।
दया करें धनवान करें तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती जिसने तेरी उतारी॥
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
घी का सुन्दर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें।
प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे।
शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥
मनोकामना पूर्ण कर दो।
चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥
शैलपुत्री माता की आरती, जो श्रद्धा और भक्ति का गहरा प्रतीक है, हमारे जीवन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसे गाने से न केवल देवी की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि यह आत्मबल और आत्मविश्वास को भी जागृत करता है। शैलपुत्री माता की आरती का जाप हमें हर कठिनाई का सामना करने का साहस और संबल देता है। इस आरती में समाहित मंत्रों की शक्ति हमें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाती है। इसलिए, हम सबको अपनी नित्य आराधना में शैलपुत्री माता की आरती को शामिल करना चाहिए, ताकि जीवन में निरंतर शांति और सुख का वास हो।