बी. एच. यू. परिसर में सरदार वल्लभ भाई पटेल छात्रावास के उद्यान में कुत्तों के हमले से घायल एक मोर की मौत हो जाने के पश्चात् रविवार के सुबह 11 बजे उसका अंतिम संस्कार छात्रावास के ही तुलसी उद्यान में राष्ट्रीय सम्मान के साथ किया गया। इस मौके पर छात्रावास के प्रशासनिक संरक्षक व पत्रकारिता विभाग के प्राध्यापक डॉ धीरेंद्र राय एवम छात्रावास संरक्षक व पाली विभाग के प्राध्यापक डॉ शैलेंद्र सिंह तथा वन विभाग के अधिकारी व छात्रावास के सभी अंतेवासी छात्र उपस्थित रहे।
बीते शनिवार रात्रि को इस घटना की सूचना डॉ शैलेंद्र सिंह द्वारा जैसे ही डॉ धीरेंद्र को मिली उन्होंने मौके पर पहुंच कर वन विभाग को इसकी सूचना दी और तत्काल घायल हुए मोर को विश्विद्यालय एंबुलेंस द्वारा महमूरगंज के एक चिकित्सक डॉ नरेंद्र प्रताप सिंह के पास ले जाया गया, जहां घंटों उपचार के बावजूद उसे बचाया न जा सका।
विश्विद्यालय में मोरों की उपस्थिति से इस परिसर के सौंदर्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही लंबे समय तक एक – दूसरे के साथ एक परिसर में रहने से यहां रह रहे पशु – पक्षियों के प्रति मानवीय संवेदना भी गहराती चली जाती है। इस अंतिम संस्कार में उपस्थित छात्रों का हुजूम और उनकी आंखों में नमी इस तथ्य को और बल दे रहे थे ।
राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति डॉ धीरेंद्र की यह प्रतिबद्धता ऐसे समय में अत्यंत सराहना के योग्य है जब पिछले दस वर्षों (2012 – 22) में मोरों के अवैध शिकार के 35 से भी अधिक मामले दर्ज हुए हों, और इस पक्षी के अस्तित्व पर संकट लगातार बढ़ रहे हों । विश्विद्यालय में मोरों की मृत्यु पर राष्ट्रीय सम्मान के साथ उसके अंतिम संस्कार की यह पहली घटना है।
इस बारे में बात करते हुए डॉ धीरेंद्र ने बताया कि राष्ट्रीय जीवों व प्रतीकों के प्रति गहरी आस्था से ही इनका संरक्षण संभव है । उन्होंने इस संबंध में विश्विद्यालय के संस्थापक महामना मदनमोहन मालवीय द्वारा परिसर में पशु-पक्षियों के लिए 1929 से 1941 तक चलाए गए जीव संरक्षण व संवर्धन अभियान तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वार जाहिर किए गए मोरों के प्रति प्रेम का हवाला देते हुए कहा कि जब विश्विद्यालय के पूज्य संस्थापक व देश का सर्वोच्च प्रतिनिधि इस बारे में इतना संजीदा है तो हम नागरिकों की जिम्मेदारी इस मामले में और बढ़ जाती है।
विश्विद्यालयों के कांधे पर युवाओं को तराशने का जिम्मेदारी भरा दायित्व है, तो ऐसे में इन संस्थानों की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है कि ये युवाओं में राष्ट्रीय संसाधनों के प्रति सम्मान के भाव की मजबूत स्थापना करें क्योंकि कोई भी राष्ट्र अपनी गरिमा और मानवीय पक्षधरता की पराकाष्ठा को तभी छू सकता है जब वह अपने सामर्थ्य एवम् संसाधनों पर गर्व करने के साथ – साथ उनके प्रति अपनी संवेदना और संरक्षण के सहृदय भाव को जीवन की प्राथमिकता का अपरिहार्य अंग बना ले।