
वाराणसी जिले के चैबेपुर में
सत्संगति हमारे जीवन को निखारती है। शरीर की पुष्टि और इन्द्रियों की तृप्ति मानव जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता। शरीर का ध्यान रखना है, जितना आवश्यक है। शरीर को सबकुछ समझ कर आत्मकल्याण के मार्ग से दूर हो जाना ये श्रेष्ठ जीवन नहीं है।
उक्त उद्गार स्वर्वेद कथामृत के प्रवर्तक सुपूज्य संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने संकल्प यात्रा के क्रम में आयोजित जय स्वर्वेद कथा एवं ध्यान साधना सत्र में उपस्थित श्रद्धालुओं के मध्य व्यक्त किये।
महाराज जी ने कहा कि जिन्दगी जीने में ही जिन्दगी बित जाती है, जीवन जीने में ही जीवन चला जाता है और ये जीवन है क्या, कौन हूं मैं इसका अनुभव नहीं हो पाता है।
संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज ने जय स्वर्वेद कथा के दौरान कहा कि अध्यात्म का महाशास्त्र है स्वर्वेद। स्वर्वेद हमारी आध्यात्मिक यात्रा को सदैव जागृत रखता है। स्वर्वेद का आचरण मनुष्य को देवत्व में स्थापित कर देता है।
उन्होंने बताया कि भीतर की अनंत शक्ति का सच्चा ज्ञान स्वयं को जानने से होता है। आंतरिक शांति के अभाव से ही आज विश्व मे अशांति है। जब हम आत्म कल्याणकारी विचारों से अपने मन को भरते हैं तब हमारा मन शांत और स्थिर स्वभाव वाला बन जाता है।
संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को विहंगम योग के क्रियात्मक योग साधना को सिखाया। कहा कि यह साधना खुद से खुद की दूरी मिटाने के लिए है।
आयोजकों ने बताया कि 25 एवं 26 नवम्बर 2025 को विशालतम ध्यान-साधना केंद्र स्वर्वेद महामंदिर धाम वाराणसी के पावन परिसर में “समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव” विहंगम योग संत समाज के 102वें वार्षिकोत्सव एवं 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के निमित्त संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज द्वारा 29 जून को राष्ट्रव्यापी स्वर्वेद संदेश यात्रा का शुभारंभ कश्मीर की धरती से हो चुका है।
यह संकल्प यात्रा कश्मीर, जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान के बाद अब उत्तर प्रदेश के कानपुर,लखनऊ, देवरिया,बलिया, गाजीपुर के बाद वाराणसी में स्वर्वेद सन्देश यात्रा के रूप में पहुँच चुकी है।
अभी तक 9 राज्यों की यात्रा करते हुए सड़क मार्ग से 15,000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर चुकी है।
कार्यक्रम का समापन भी राष्ट्रगान के साथ हुआ, और अंत में सभी श्रद्धालुओं ने आगामी 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ हेतु सेवा–संकल्प लिया — समष्टि चेतना से युक्त एक विराट आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए।

