भारत, जो ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहा है, 2035 तक वैश्विक तेल मांग में एक प्रमुख योगदानकर्ता बनने के लिए तैयार है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत इस अवधि में वैश्विक तेल मांग में लगभग 2 मिलियन बैरल प्रति दिन (एमबी/डी) का योगदान करेगा, जो वैश्विक तेल बाजार के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है।
भारत का प्रमुख स्थान: तेल मांग वृद्धि में तेजी
आईईए ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि भारत, वैश्विक तेल उद्योग का सबसे बड़ा विकास चालक बनने की दिशा में बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अगले दशक में वैश्विक तेल मांग के मुख्य स्रोत के रूप में उभरेगा, और यह वृद्धि न केवल देश की बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिकीकरण से संबंधित होगी, बल्कि ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता और विकासशील अर्थव्यवस्था के कारण भी होगी।
2035 तक, भारत लगभग 2 मिलियन बैरल प्रति दिन तेल की मांग में इजाफा करेगा। इस वृद्धि के साथ, भारत वैश्विक तेल बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करेगा और पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में सबसे तेज़ विकास को आगे बढ़ाएगा।
चीन का बदलाव: बिजली से चलने वाली ऊर्जा की ओर बढ़ता रुझान
यह वृद्धि ऐसे समय में हो रही है जब चीन, जो पहले तेल बाजार में सबसे बड़ा योगदानकर्ता था, अब अपने ऊर्जा उपयोग को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव कर रहा है। चीन ने हाल के वर्षों में बिजली से चलने वाली ऊर्जा स्रोतों की दिशा में कदम बढ़ाया है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, और यह सड़क परिवहन के लिए तेल की खपत में गिरावट का कारण बन सकता है। हालांकि, यह गिरावट पेट्रोकेमिकल उत्पादन में तेल के बढ़ते उपयोग से आंशिक रूप से संतुलित हो जाएगी।
वैश्विक तेल मांग में धीमी वृद्धि
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि वैश्विक स्तर पर तेल की मांग में वृद्धि धीमी हो रही है। “स्टेटेड पॉलिसी परिदृश्य” (STEPS) के तहत, तेल की मांग में वृद्धि की गति कम हो रही है, और यह वैश्विक तेल बाजार के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती है। 2030 तक, अतिरिक्त कच्चे तेल का उत्पादन 8 मिलियन बैरल प्रति दिन (MBPD) तक बढ़ सकता है, जिससे ओवरसप्लाई की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
आईईए ने मध्य पूर्व में संभावित भू-राजनीतिक तनावों के कारण तेल और गैस आपूर्ति में व्यवधानों की चेतावनी दी है। यह तनाव वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव आ सकता है।
होर्मुज जलडमरूमध्य: एक महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट
आईईए की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि होर्मुज जलडमरूमध्य, जो वैश्विक तेल और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) आपूर्ति का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा है, एक महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट के रूप में उभरा है। इस जलडमरूमध्य के माध्यम से होने वाली आपूर्ति किसी भी भू-राजनीतिक संकट के दौरान वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित कर सकती है। ऐसे में, यह क्षेत्र वैश्विक तेल व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण नज़रिए से देखा जाता है।
परिवहन क्षेत्र में परिवर्तन: तेल की खपत में बदलाव
आईईए की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि परिवहन क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं। पिछले दशक में, सड़क परिवहन ने वैश्विक तेल मांग में 4.2 मिलियन बैरल प्रति दिन की वृद्धि की, जो कुल वैश्विक मांग वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा था। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रवृत्ति बदल रही है, और 2030 तक, यात्री वाहनों के लिए तेल की मांग में 1 मिलियन बैरल प्रति दिन की गिरावट आ सकती है।
इस बदलाव का मुख्य कारण इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता उपयोग और परिवहन क्षेत्र में स्थिरता के लिए नए उपायों का अपनाया जाना है। यह बदलाव, विशेष रूप से विकसित देशों में, तेल मांग में गिरावट का कारण बन सकता है, जो वैश्विक ऊर्जा बाजार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी।
नई LNG परियोजनाओं का योगदान: 2030 तक वैश्विक निर्यात क्षमता में वृद्धि
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नई LNG परियोजनाओं से 2030 तक वैश्विक निर्यात क्षमता में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। यह वृद्धि, विशेष रूप से प्राकृतिक गैस के वैश्विक आपूर्ति नेटवर्क में परिवर्तन का संकेत देती है। वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में यह परिवर्तन नए देशों को ऊर्जा आपूर्ति में प्रमुख स्थान प्रदान करेगा और वैश्विक तेल मांग पर दबाव डालेगा।
भारत का भविष्य: तेल मांग को आकार देने वाली एक शक्ति
भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए, यह साफ है कि भारत वैश्विक तेल बाजारों को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभाएगा। भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था और बढ़ती ऊर्जा जरूरतें, तेल की मांग में वृद्धि को बढ़ावा देंगी। इसके अलावा, भारत की जनसंख्या में वृद्धि और औद्योगिकीकरण के साथ-साथ घरेलू परिवहन में तेल की खपत में वृद्धि की संभावना है।
भारत की ऊर्जा रणनीति, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का समावेश भी किया गया है, के बावजूद, तेल की खपत में वृद्धि के कारण भारत अगले दशक में तेल की मांग में एक महत्वपूर्ण योगदान देगा।