ग्राम सभा रैथा की रामलीला: सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक

Shiv murti

ग्राम सभा रैथा की रामलीला का मंचन एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सामुदायिक सहयोग का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है। राम जन्म से लेकर रावण वध तक की कथा का मंचन, भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता को दर्शाता है। यह न केवल एक नाटकीय प्रस्तुति है, बल्कि यह हमारे धार्मिक और नैतिक मूल्यों को भी पुनः जीवित करता है।

कलाकारों का योगदान

ग्राम सभा के कृष्णा विश्वकर्मा जैसे कलाकारों का योगदान इस परंपरा को बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। लगभग 50 वर्षों से रामलीला में अभिनय करना केवल एक पेशेवर गतिविधि नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। उनकी मेहनत, समर्पण और कला का प्रदर्शन न केवल दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि युवा पीढ़ी को प्रेरित भी करता है।

सम्मान और मान्यता

रामलीला समिति द्वारा कृष्णा विश्वकर्मा को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह प्रदान करना उनके योगदान की सराहना का प्रतीक है। यह सम्मान केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों का नहीं, बल्कि सामुदायिक संस्कृति के प्रति उनकी निष्ठा और प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। ऐसे सम्मान समारोह से अन्य कलाकारों को भी प्रेरणा मिलती है कि वे अपनी कला को आगे बढ़ाएं और अपने समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर को संजोएं।

सांस्कृतिक मूल्य

इस प्रकार के आयोजनों से यह स्पष्ट होता है कि हमारे समाज में कला और संस्कृति का कितना महत्व है। रामलीला जैसे आयोजनों में भागीदारी से न केवल मनोरंजन होता है, बल्कि यह एकता, सहिष्णुता और सहयोग का संदेश भी फैलाता है। जब गांव के लोग एकत्रित होते हैं, तो वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को साझा करते हैं और एक दूसरे के साथ अपने अनुभवों को बांटते हैं।

इस प्रकार, ग्राम सभा रैथा की रामलीला न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने का एक माध्यम भी है। कृष्णा विश्वकर्मा जैसे समर्पित कलाकारों के प्रयास और उन्हें मिलने वाला सम्मान इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए समुदाय की सहभागिता कितनी महत्वपूर्ण है। यह आयोजन न केवल अतीत की याद दिलाता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनता है।

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