सीवेज निस्तारण न होने से यमुना की बिगड़ी हालात, सीपीसीबी की रिपोर्ट से खुलासा

सीवेज निस्तारण न होने से यमुना की बिगड़ी हालात
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दिल्ली में यमुना नदी की बिगड़ती स्थिति पर चिंता जताई जा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, सीवेज के निस्तारण की प्रक्रिया सही तरीके से नहीं हो रही है, जिससे यमुना की हालत और भी खराब होती जा रही है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि लगभग 187.82 मिलियन गैलन प्रति दिन (एमजीडी) सीवेज बिना शोधन के सीधे यमुना में मिल रहा है। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय संकट को जन्म देती है, बल्कि दिल्लीवासियों के लिए भी गंभीर खतरे की घंटी है।

सीपीसीबी और एनजीटी के निरीक्षण में खामियां सामने आईं

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सीपीसीबी की रिपोर्ट पर गहरी चिंता जताई है। निरीक्षण के बाद एनजीटी ने पाया कि दिल्ली के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं और सीवेज का बड़ा हिस्सा बिना शोधन के यमुना में मिल रहा है। एनजीटी ने आदेश दिया है कि सीपीसीबी और दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) दो हफ्ते के अंदर एक नई रिपोर्ट दाखिल करें।

एनजीटी ने यह भी कहा कि सीपीसीबी की रिपोर्ट में कई खामियां हैं और अधिक जानकारी की आवश्यकता है। एनजीटी ने विशेष रूप से यह बताया कि फिलहाल चल रहे एसटीपी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं, जिससे यमुना नदी को साफ करने के प्रयासों में रुकावटें आ रही हैं।

सीवेज शोधन में देरी और एसटीपी की कमी

सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में अनुमानित सीवेज उत्पादन 792 एमजीडी है, जबकि यहां लगे एसटीपी की क्षमता केवल 712 एमजीडी है। इसका मतलब यह है कि दिल्ली में जो सीवेज उत्पादन हो रहा है, उसका एक बड़ा हिस्सा बिना शोधन के नदी में मिल रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फिलहाल 604.18 एमजीडी का ही शोधन हो रहा है, जबकि बाकी सीवेज बिना शोधन के यमुना में जा रहा है।

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इसके अलावा, रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि दिसंबर 2024 तक एसटीपी की क्षमता बढ़ाकर 814 एमजीडी किए जाने का अनुमान है, लेकिन इस सुधार का असर तब तक यमुना पर नहीं पड़ेगा, जब तक सीवेज का शोधन पूरी तरह से शुरू नहीं हो जाता।

एसटीपी की खराब कार्यक्षमता और सुधार के प्रयास

एनजीटी ने यह भी पाया कि जिन एसटीपी की कुल क्षमता 375.4 एमजीडी है, वे जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और कुल निलंबित ठोस (टीएसएस) के मानकों पर काम कर रहे हैं। इसके बावजूद, इन एसटीपी की क्षमता अभी पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हो पा रही है। दूसरी ओर, 497.16 एमजीडी की कुल क्षमता वाले 22 एसटीपी को नए मानकों के तहत फिर से डिजाइन किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकार के सुधारों के बावजूद, दिल्ली में सीवेज का शोधन पर्याप्त नहीं हो पा रहा है।

एनजीटी ने इन सुधारों को लेकर और सख्त कदम उठाने की सलाह दी है ताकि यमुना नदी को प्रदूषण से बचाया जा सके। इन नए एसटीपी के कार्यान्वयन से यमुना को कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन इसके लिए समय की आवश्यकता है।

नजफगढ़ नाले में सुधार की योजना

रिपोर्ट के मुताबिक, नजफगढ़ नाले में 40 छोटे-छोटे शोधन प्लांट स्थापित किए जाने हैं, जिनकी क्षमता 92 एमजीडी होगी। ये छोटे प्लांट नजफगढ़ नाले से निकलने वाले प्रदूषित पानी को साफ करने में मदद करेंगे और यमुना नदी में मिलने वाले सीवेज के प्रवाह को कम करेंगे। हालांकि, इन प्लांट्स की स्थापना के लिए समय और संसाधन दोनों की आवश्यकता है।

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सीपीसीबी और डीजेबी की रिपोर्ट में कमियां

एनजीटी ने यह भी पाया कि दिल्ली जल बोर्ड की रिपोर्ट में एसटीपी के उपचारित अपशिष्टों का फीकल कोलीफॉर्म के संदर्भ में विश्लेषण नहीं किया गया है। इससे यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि शोधन प्रक्रिया में कितनी प्रभावशीलता है। अदालत ने सीपीसीबी और डीजेबी को निर्देश दिया है कि वे इस मुद्दे पर ध्यान दें और उपरोक्त सुझावों के आधार पर नई रिपोर्ट दाखिल करें।