
सावन माह में एक गैर-हिन्दू के खेत में नींव की खुदाई के दौरान भगवान शिव का अर्घा सहित शिवलिंग निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं माना गया। सावन जैसे पावन महीने में शिवलिंग के मिलने की खबर तेजी से पूरे क्षेत्र में फैल गई और देखते ही देखते वहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ने लगी।
जैसे ही भूमिधर सकलैन को इस बात की जानकारी हुई, उन्होंने धार्मिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए मंदिर निर्माण और रास्ते के लिए अपनी एक विश्वा जमीन देने की घोषणा कर दी। हालांकि, दूसरी ओर हिन्दू संगठनों ने पूरे मामले की जांच राजस्व व तत्व विभाग से कराने की मांग की, जिससे तनाव का माहौल पैदा हो गया। हालात को देखते हुए प्रशासन ने भारी पुलिस बल की तैनाती कर दी।
राजस्व विभाग ने मौके पर कई बार नाप-जोख कर दस्तावेजों की जांच की। 1356 फसली समेत अन्य अभिलेखों में यह जमीन गैर-हिन्दू की पाई गई, जबकि बगल में आबादी की जमीन भी चिन्हित हुई। प्रशासन ने मंदिर निर्माण के लिए दोनों पक्षों से लगातार वार्ता की कोशिश की, लेकिन मामला उलझता चला गया। स्थिति बिगड़ने पर पुलिस की एलआईयू रिपोर्ट के आधार पर एसडीएम कोर्ट ने 10 लोगों को दस-दस लाख रुपये की पाबंदी के तहत सम्मन जारी कर दिया।
कोर्ट की सख्ती के बाद माहौल बदलने लगा। सम्मन के अगले ही दिन वार्ता का रास्ता खुला और अंततः सोमवार को दोनों पक्षों की सहमति से आबादी की जमीन पर मंदिर निर्माण का निर्णय लिया गया। इस समझौते के दौरान एसडीएम अनुपम मिश्रा, सीओ कृष्ण मुरारी शर्मा, सीओ सकलडीहा स्नेहा तिवारी समेत अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे।
इस तरह सावन में मिले शिवलिंग को लेकर उपजा विवाद प्रशासनिक प्रयासों और आपसी सहमति से शांत हुआ।
ब्यूरोचीफ गणपत राय