
✍️ कलम से – मुकेश पांडे “सौरभ”
सीईओ, नवचेतना एफपीओ – मिर्जापुर
परिचय : गांवों में बदलती अर्थव्यवस्था की तस्वीर
उत्तर प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्य में अब गांव केवल खेती तक सीमित नहीं हैं। आज ग्रामीण भारत की पहचान कृषि से उद्यमिता की ओर संक्रमण के रूप में हो रही है। इस परिवर्तन की धारा को दिशा दे रहे हैं — महिलाएं और युवा।
जहां पहले गांवों में रोज़गार का अर्थ खेती माना जाता था, वहीं अब गैर-कृषि आधारित उद्योग, स्वयं सहायता समूह और ग्रामीण स्टार्टअप्स ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नई पहचान बन रहे हैं।
महिला उद्यमिता : आत्मनिर्भरता का नया अध्याय
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के प्रयासों से उत्तर प्रदेश में अब 60 लाख से अधिक महिलाएं स्वरोज़गार से जुड़ी हैं।
वे दुग्ध उत्पादन, मशरूम, मधुमक्खी पालन, खाद्य प्रसंस्करण, हस्तशिल्प और बायोफर्टिलाइज़र निर्माण में अपनी पहचान बना रही हैं।
“महिलाएं अब परिवार की ‘आर्थिक प्रबंधक’ बन चुकी हैं — वे निर्णय ले रही हैं, निवेश कर रही हैं और स्थानीय बाजारों को दिशा दे रही हैं।”
इन पहलों से न केवल आय बढ़ी है बल्कि ग्रामीण समाज में समानता और सम्मान की भावना भी सशक्त हुई है।
युवा : नवाचार और आत्मविश्वास का प्रतीक
उत्तर प्रदेश की लगभग 34% आबादी 15–35 वर्ष के युवाओं की है। यह पीढ़ी तकनीकी दृष्टि से सक्षम और सोच में प्रगतिशील है।
मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना, स्टार्टअप नीति 2020 और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम जैसी योजनाओं के माध्यम से हजारों युवाओं ने ग्रामीण स्तर पर अपने व्यवसाय शुरू किए हैं।
वे एग्री-बिजनेस, डिजिटल सर्विस, ई-कॉमर्स, ग्रामीण पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में नए अवसर तलाश रहे हैं।
“अब युवा नौकरी खोजने नहीं, नौकरी देने वाले बन रहे हैं — यही ग्रामीण क्रांति की असली शुरुआत है।”
गैर-कृषि उद्योगों का बढ़ता प्रभाव : गांवों में उद्योग का विस्तार
उत्तर प्रदेश सरकार की वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) योजना ने स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दी है —
मिर्जापुर का कालीन, भदोही की दरी, ललितपुर की दाल, जौनपुर का इत्र अब विश्व बाजारों तक पहुंच रहे हैं।
राज्य खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में गैर-कृषि क्षेत्र में ग्रामीण रोजगार में 18% की वृद्धि दर्ज की गई है।
इसी प्रकार फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स, एग्रो-बेस्ड माइक्रो इंडस्ट्रीज और कौशल आधारित सेवा उद्यमों ने पलायन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
पलायन में कमी, आत्मनिर्भरता में बढ़ोतरी
जहां पहले ग्रामीण युवा महानगरों की ओर पलायन करते थे, अब स्थानीय रोजगार के अवसर उन्हें गांव में ही रोक रहे हैं।
पूर्वांचल के 12 जिलों के आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच वर्षों में स्थानीय स्वरोजगार के अवसरों में 22% की वृद्धि हुई है।
यह संकेत है कि गांव अब रोजगार के स्रोत बन रहे हैं, बोझ नहीं।
निष्कर्ष : आत्मनिर्भर भारत की असली प्रयोगशाला – गांव
गांवों का भविष्य अब केवल खेतों में नहीं, बल्कि कौशल, नवाचार और उद्यमिता में निहित है।
महिलाएं अपने परिवार की अर्थनीति को समझ रही हैं, और युवा गांव की अर्थव्यवस्था को दिशा दे रहे हैं।
“जब महिला, युवा और उद्यमिता एक साथ चलें — तब आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होता है।”
सरकार, वित्तीय संस्थान और समाज यदि इस दिशा में एकजुट होकर काम करें, तो उत्तर प्रदेश का हर गांव एक छोटा औद्योगिक केंद्र बन सकता है —
जहां आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और विकास साथ-साथ पनपेंगे।
✍️ कलम से – मुकेश पांडे “सौरभ”
सीईओ, नवचेतना एफपीओ – मिर्जापुर
(ग्रामीण विकास, पर्यावरण और कृषि-आधारित उद्यमिता के क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक उद्यमी)
