हमारे शास्त्रों में धरती को माँ का दर्जा दिया गया है जो हमें अन्न, जल, वायु और जीवन प्रदान करती है। जब भी हम कोई धार्मिक कार्य आरंभ करते हैं या भूमि पर पैर रखते हैं, तो पहले भूमि माता से क्षमा मांगते हैं। ऐसा ही एक शक्तिशाली और पवित्र मंत्र है भूमि गायत्री मंत्र, जिसे जपने से व्यक्ति को न केवल मानसिक शांति मिलती है बल्कि धरती माता की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है। आइए, इस लेख में हम जानेंगे गायत्री मंत्र की विधि, इसके लाभ और इसका गूढ़ आध्यात्मिक महत्व।
गायत्री मंत्र
ॐ भूम्यै च विद्महे
महापुरुषाय धीमहि
तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्॥
भूमि गायत्री मंत्र एक ऐसा दिव्य स्त्रोत है जो हमें धरती माता से जोड़ता है और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का सशक्त माध्यम बनता है। जब हम इस मंत्र का श्रद्धा से जाप करते हैं, तो यह न केवल हमारी आंतरिक उन्नति करता है, बल्कि प्रकृति से हमारा संबंध भी मजबूत करता है। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा हो तो आप गायत्री मंत्र के चमत्कारी लाभ, पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी प्रार्थनाएं, वास्तु शुद्धि हेतु मंत्र और ध्यान के लिए श्रेष्ठ वैदिक मंत्र जैसे लेख भी अवश्य पढ़ें और आध्यात्मिक लाभ उठाएं।
विधि
- गायत्री मंत्र का जाप करते समय विशेष सावधानियों और नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे इसका प्रभाव अधिक गहरा और फलदायी हो।
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले या सूर्य की पहली किरण के साथ, स्वच्छ होकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- शांत मन से कम से कम 11, 21 या 108 बार इस मंत्र का जप करें।
- जाप से पूर्व भूमि को स्पर्श कर प्रणाम करें और आभार व्यक्त करें।
- जाप के बाद थोड़ी देर मौन रहकर धरती माता की ऊर्जा को अपने भीतर अनुभव करें।
लाभ
- भूमि गायत्री मंत्र का नियमित जाप करने से कई आध्यात्मिक और व्यावहारिक लाभ मिलते हैं:
- यह मंत्र मानसिक शांति, संतुलन और स्थिरता प्रदान करता है।
- विद्यार्थियों के लिए एकाग्रता और स्मरण शक्ति में वृद्धि करता है।
- वास्तु दोष और भूमि से जुड़ी परेशानियों को दूर करने में सहायक होता है।
- किसान वर्ग या भूमि से जुड़े लोगों को विशेष लाभ प्राप्त होता है।
- यह मंत्र हमारे पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और प्रेम उत्पन्न करता है।