भारतीय सनातन परंपरा में माता गौरी को सौंदर्य, शांति और शक्ति की देवी माना जाता है। वह आदिशक्ति हैं जो जगत की रचना, पालन और संहार तीनों में सहयोग करती हैं। आज हम बात कर रहे हैं Gauri Gayatri Mantra की, जो न केवल साधक के जीवन में सौभाग्य और सुख का संचार करता है, बल्कि आत्मिक उन्नति का भी मार्ग प्रशस्त करता है। यह लेख इस मंत्र की विधि, लाभ और आध्यात्मिक महत्व को सरल और आत्मीय शैली में प्रस्तुत करता है।
मंत्र
ॐ गौरी देव्यै च विद्महे महेश्वर्यै धीमहि।
तन्नो दुर्गि प्रचोदयात्॥
Gauri Gayatri Mantra केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि एक साधना है जो माँ गौरी के सौंदर्य, शक्ति और करुणा का अनुभव कराती है। जो साधक नियमित श्रद्धा से इसका जाप करता है, उसका जीवन सुख, समृद्धि और शांति से भर जाता है। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगा हो तो आप गौरी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र, माता पार्वती स्तुति, शिव पार्वती विवाह मंत्र और नवरात्रि देवी मंत्र संग्रह भी अवश्य पढ़ें – ये सभी आपकी भक्ति को और अधिक मजबूत बनाएंगे।
जाप करने की विधि
- शुद्ध वातावरण में प्रारंभ करें: प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें और माता गौरी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करें।
- शांत चित्त से आसन ग्रहण करें: आसन पर बैठकर कुछ देर तक ध्यान एकाग्र करें।
- कम से कम 108 बार जप करें: रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का 108 बार जप करें।
- पुष्प या अक्षत अर्पण करें: हर जप के साथ माता को पुष्प या अक्षत अर्पित करें।
- अंत में प्रार्थना करें: संपूर्ण जप के बाद माता गौरी से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
लाभ
- विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं: यह मंत्र अविवाहित कन्याओं के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।
- मानसिक शांति और आत्मबल बढ़ता है: नित्य जप करने से साधक को आंतरिक स्थिरता प्राप्त होती है।
- पारिवारिक सुख-संपन्नता मिलती है: गृहस्थ जीवन में संतुलन, समृद्धि और प्रेम बना रहता है।
- आध्यात्मिक उन्नति होती है: यह मंत्र साधक के भीतर छुपी शक्ति को जागृत करता है और उसे ईश्वरीय ऊर्जा से जोड़ता है।