भारत, पाकिस्तान और चीन: एक संभावित त्रिकोणीय युद्ध की भू-राजनीतिक चेतावनी

Shiv murti

भारत और पाकिस्तान के बीच पारंपरिक तनाव अगर युद्ध का रूप ले लेता है, और उस स्थिति में चीन पाकिस्तान के समर्थन में सामने आता है, तो यह महज सीमाई संघर्ष नहीं रहेगा, बल्कि एक गहन और व्यापक भू-राजनीतिक संकट बन जाएगा। यह परिदृश्य भारत के लिए दोहरे मोर्चे की चुनौती लेकर आता है — एक ओर सैन्य दबाव और दूसरी ओर आर्थिक व कूटनीतिक घेराबंदी का खतरा।

चीन और पाकिस्तान के बीच वर्षों से चला आ रहा सामरिक सहयोग, अब नई ऊँचाइयों पर है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), ग्वादर पोर्ट का विकास, और दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को संतुलित करने की चीन की नीति — इन सबका संयोजन चीन को पाकिस्तान के साथ खड़ा करता है। अगर युद्ध की स्थिति बनती है, तो चीन द्वारा पाकिस्तान का समर्थन सिर्फ एक रणनीतिक साझेदारी नहीं, बल्कि भारत को कूटनीतिक व आर्थिक स्तर पर अलग-थलग करने का प्रयास होगा।

यह गठबंधन भारत के लिए अनेक प्रकार की चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। एक ओर चीन की सैन्य क्षमता और तकनीकी श्रेष्ठता, और दूसरी ओर पाकिस्तान के साथ उसका सामरिक समन्वय, भारत को एक ही समय में दो सीमाओं पर सजग रहने को मजबूर करेगा। इस तरह की स्थिति भारतीय सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक नीति-निर्माताओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है।

भारत को इस संभावित चुनौती का सामना करने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी। सबसे पहले, आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता देनी होगी, जिससे विदेशों पर निर्भरता कम हो और युद्ध की स्थिति में संसाधनों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। साथ ही, अत्याधुनिक सैन्य तकनीक और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में तेज़ी से उन्नति करना जरूरी है।

दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है भारत की कूटनीतिक सक्रियता। भारत को वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति को और अधिक सुदृढ़ बनाना होगा, जिससे वह चीन और पाकिस्तान द्वारा बनाई गई अंतरराष्ट्रीय छवि को चुनौती दे सके। रणनीतिक साझेदारियों — जैसे अमेरिका, जापान, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग — को और मजबूत करना होगा।

तीसरी और सबसे आवश्यक बात है — भारत की आंतरिक एकता। किसी भी बाहरी खतरे का प्रभाव तभी न्यूनतम होगा जब देश के भीतर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता बनी रहे। भारत की विविधता उसकी शक्ति है, परंतु किसी युद्धकालीन स्थिति में यही विविधता अगर विभाजन का कारण बनी, तो यह एक गंभीर जोखिम बन सकता है।

अंततः, भारत को इस संभावित त्रिकोणीय संघर्ष को केवल सैन्य दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के दृष्टिकोण से देखना होगा। जब चुनौतियाँ बहुपरती हों, तो जवाब भी उतना ही व्यापक और समन्वित होना चाहिए।

खबर को शेयर करे
Shiv murti
Shiv murti