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आज 25 दिसंबर को सिनेमा जगत के दिग्गज निर्माता-निर्देशक जीपी सिप्पी की पुण्यतिथि है। हिंदी सिनेमा को ‘शोले’ जैसी ऐतिहासिक फिल्म देने वाले जीपी सिप्पी का नाम आज भी दर्शकों के दिलों में बसा हुआ है। उनके बनाए सिनेमा ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि एक नई दिशा भी दी।
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जीपी सिप्पी: एक साधारण शुरुआत
गोपालदास परमानंद सिपाहीमलानी, जिन्हें जीपी सिप्पी के नाम से जाना जाता है, का जन्म 14 सितंबर 1914 को कराची में हुआ था। उनका परिवार एक सामान्य व्यापारी था, लेकिन जीपी सिप्पी ने बचपन से ही बड़े सपने देखे। उन्होंने वकालत करने का सपना देखा था और इसके लिए पढ़ाई भी शुरू की थी।
वकील बनने का सपना कैसे बदला?
जीपी सिप्पी का सपना वकील बनने का था, लेकिन उनके जीवन में एक मोड़ आया जब उन्हें अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल होना पड़ा। हालांकि, उनकी रचनात्मकता और सिनेमा के प्रति जुनून ने उन्हें फिल्म निर्माण की ओर खींच लिया। उन्होंने 1951 में ‘साज़ और आवाज़’ नामक फिल्म के साथ अपने करियर की शुरुआत की।
‘जीपी सिप्पी’ नाम से क्यों डरते थे अंग्रेज?
जीपी सिप्पी के नाम से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी यह है कि उनका असली नाम गोपालदास परमानंद सिपाहीमलानी था। यह नाम अंग्रेजों के लिए बोलना और समझना मुश्किल था। इसलिए उन्होंने अपने नाम को छोटा कर ‘जीपी सिप्पी’ रख लिया। हालांकि, उनका असली नाम सुनते ही अंग्रेज डर जाते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि यह किसी सैन्य व्यक्ति का नाम है।
‘शोले’ से मिली ऐतिहासिक सफलता
जीपी सिप्पी ने अपने करियर में कई सफल फिल्में बनाईं, लेकिन 1975 में रिलीज हुई ‘शोले’ ने उन्हें अमर कर दिया। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित और जीपी सिप्पी द्वारा निर्मित इस फिल्म ने सिनेमा की परिभाषा ही बदल दी।
शोले की खास बातें:
- यह फिल्म भारतीय सिनेमा की पहली मल्टीस्टारर फिल्मों में से एक थी।
- ‘शोले’ ने बॉक्स ऑफिस पर नए रिकॉर्ड बनाए और इसे आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में गिना जाता है।
- फिल्म के डायलॉग, किरदार, और कहानी आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं।
जीपी सिप्पी का अन्य योगदान
जीपी सिप्पी ने केवल ‘शोले’ ही नहीं, बल्कि ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘शान’, और ‘सीता और गीता’ जैसी फिल्में भी बनाई। उनकी फिल्मों ने मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों को भी दर्शाया। उन्होंने अपने दौर के सबसे बेहतरीन कलाकारों और निर्देशकों के साथ काम किया।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
जीपी सिप्पी ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। उनके लिए फिल्म निर्माण सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक जुनून था। उन्होंने अपने संघर्षों से यह साबित किया कि अगर आप किसी चीज के प्रति समर्पित हैं, तो सफलता जरूर मिलेगी।
जीपी सिप्पी का सिनेमा प्रेम
जीपी सिप्पी का सिनेमा प्रेम उनके हर प्रोजेक्ट में झलकता था। वह हर छोटी से छोटी बात पर ध्यान देते थे। उनकी यही खासियत उन्हें दूसरे निर्माताओं से अलग बनाती थी।
उनकी विरासत
जीपी सिप्पी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका सिनेमा आज भी जिंदा है। उनकी बनाई गई फिल्में हर पीढ़ी को प्रेरित करती हैं। सिनेमा के प्रति उनका योगदान अमूल्य है। उनकी विरासत को उनके बेटे रमेश सिप्पी और परिवार के अन्य सदस्य आगे बढ़ा रहे हैं।