काशी-तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की दसवीं संध्या

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“मईया तोरी पावन लहरिया, नीर हरत हर पीर, गंगा तोरी पावन लहरिया’
डिमिक-डिमिक डमरू कर बाजे, प्रेम मगन नाचे भोला

काशी-तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की दसवीं संध्या पर काशी और तमिलनाडु के नौ सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। बुधवार की शाम दोनों राज्यों के शास्त्रीय और लोक नृत्य, लोक गायन और वाद्य वादन आदि प्रस्तुतियों ने नमो घाट को संगीतमय कर दिया। बुधवार को मां गंगा के तट पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उठाकर समस्त डेलीगेट्स काफी मुग्ध नजर आए। काशी तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण के सांस्कृतिक संध्या का आयोजन उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र प्रयागराज एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र तंजावूर, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा किया गया है।

काशी-तमिल संगमम के द्वितीय संस्करण में सांस्कृतिक कार्यक्रम में वाराणसी के पुलिस कमिश्नर अशोक मुथा जैन, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉ. निर्मलजीत सिंह, अध्यक्ष, राष्ट्रीय व्यवसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र (एनसीवीईटी), कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय, भारत सरकार और विशिष्ट अतिथि के. राजारमन, अध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण और डीसीपी काशी आरएस गौतम भी मौजूद रहे।

कलाकारों ने बांधा समा

नमो घाट पर बैठे दर्शक “”डिमिक-डिमिक डमरू कर बाजे, प्रेम मगन नाचे भोला” लोक गीत पर कलाकारों का कथक नृत्य देख काफी मगन नजर आए। बनारस घराने से डॉ. ममता मिश्रा और रविशंकर मिश्रा और नृत्यांगनाओं की टीम ने घूंघरू की झन्कार और ता धिना कर पूरे नमो घाट की शाम बना दी। इस दौरान नृत्यांगनाओं और पंडित रविशंकर भगवान शंकर के तांडव और नृत्य करके दिखाया। इस दौरान उन्होंने घूंघरू से बारिश और हवा संग बारिश की आवाज भी निकाली। ये सुन नमो घाट पर बैठे दर्शकों ने ताबड़तोड़ तालियां बजाईं।

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इसके अलावा, वाराणसी से डॉ. शिवानी शुक्ला और उनकी टीम ने गायन की प्रस्तुति दी। “मईया तोरी पावन लहरिया, नीर हरत हर पीर, गंगा तोरी पावन लहरिया’ गाकर लोगों को गंगा मां की भक्तिरस में डूबो दिया। इसके अलावा, वाराणसी से पंडित रविंद्र गोस्वामी और टीम ने वाद्य यंत्रों पर बड़ी मनोहारी प्रस्तुति देकर दर्शकों को मुग्ध कर दिया।

अन्य प्रस्तुतियां
पी महेंद्रियन और टीम ने ओयलाट्टम, उरुमी, नैयांडिमेलम और टी गोकुल ने अपनी टीम के साथ पंबई, काई सिलांबटम, कवाडिअट्टम पर प्रस्तुति दी। इसमें तमिल कलाकारों ने कई तरह के हैरतअंगेज करतब भी दिखाए। इसके बाद डांस मास्टर ए माधवर्मन और टीम ने भरतनाट्टयम पर 20 मिनट की प्रस्तुति दी। इसके अलावा, एस जयती और टीम ने थपट्टम, कालायसुदरमणि सी मैगमणि ने कारगम और नैयांडिमेलम और अंतिम नौवीं प्रस्तुति के भारनी के सिवान, पार्वती और सामयट्टम की रही।

विशिष्ट अतिथियों नमो घाट पर लगे सभी स्टॉलों और एग्जीबिशन को देखा

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा, संगमम में आए विशिष्ट अतिथियों ने बुधवार को नमो घाट पर लगे सभी स्टॉलों और एग्जीबिशन को देखा। उन्होंने कहा कि ये काफी शानदार है। इस दौरान उन्होंने कलाकारों और कलाकृतियों को सम्मानित करने की बात की। भारत सरकार ने नेशनल फ्रेमवर्क की शुरुआत की है। एनसीवीईटी की तरफ से कल्चर के महत्व को पहचान दिलाले के लिए काफी काम किया जा रहा है। इसकी वेबसाइट पर जाकर अपनी कला के बारे में बात सकते हैं। जितने भी बच्चे हैं, अपने माता-पिता या अपने फोन पर स्किल इंडिया का डिजिटल का एप्लीकेशन स्टॉल कर सकते हैं। इसमें आप कई तरह के सर्टिफिकेशन काम कर सकते हैं। इतने कलाकारों को एक साथ लाना और जगह रखना छोटी बात नहीं है।

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सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान विशिष्ट अतिथियों ने अपने उद्बोधन भी दिए

सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान विशिष्ट अतिथियों ने अपने उद्बोधन भी दिए। एनसीवीईटी के अध्यक्ष डॉ. निर्मलजीत सिंह ने कहा कि काशी और तमिलनाडु की तरफ से आए हुए कलाकार साथियों को मेरा प्रणाम। ये काशी-तमिल संगमम का दूसरा संस्करण है। दोनों सभ्यताओं के बीच सदियों पुराने संबंधों का स्थाई और मजबूत बहिआर्यामी संबंध, भारत की अद्वितीय निरंतरता और संस्कृति एकता में अंतनिर्हित शक्तियों को उजागर करता है। काशी-तमिल संगमम को एक भारत-श्रेष्ठ भारत का अलंकार बताना गलत नहीं होगा। इस दौरान डॉ. सिंह ने काशी और तमिलनाडु के बीच संबंधों के कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएं बताईं। कहा कि इन पवित्र स्थानाें में बड़ा संबंध है। काशी और कांची इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। शंकाराचार्य ने काशी में ब्रह्मसूत्र का प्रतिपादन किया, जिससे काशी का महत्व ज्यादा है।

काशी से भी लोग तमिलनाडु विजिट करने जाएंगे

के. राजारमन ने कहा कि हमारे देश की कलाएं अलग-अलग दिखती हैं। लेकिन सभ्यताओं में एक संबंध है। एक भारत-श्रेष्ठ भारत के नाम पर प्रधानमंत्री जी कार्यक्रम चला रहे हैं। भारत के सभी राज्यों के शिल्प शास्त्र और संगीत शास्त्र में भिन्नता और एकता भी है। इसी के लिए हम लोग ये कार्यक्रम चला रहे हैं। इस दौरान उन्होंने तमिल भाषा में अपने आए डेलीगेटस से बातचीत की। जिस तरह से तमिलनाडु से डेलीगेट्स काशी आए हैं, वैसे ही काशी से भी लोग तमिलनाडु विजिट करने जाएंगे। ऐसी व्यवस्था अगले साल बनाई जाएगी