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कल से शुरू होगा आषाढ़ का महीना

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आषाढ़ का महीना हिन्दू पंचांग का चौथा महीना है और इसे भारतीय संस्कृति और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आषाढ़ का महीना आमतौर पर जून और जुलाई के बीच आता है और यह ऋतु परिवर्तन का समय होता है, जब ग्रीष्म ऋतु से वर्षा ऋतु में प्रवेश होता है। इस लेख में हम आषाढ़ महीने के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि इस महीने में कौन-कौन से कार्य करने चाहिए।

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धार्मिक महत्व

आषाढ़ का महीना हिन्दू धर्म में कई महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों और त्योहारों का समय होता है। इस महीने का प्रमुख पर्व है ‘आषाढ़ी एकादशी’ जिसे ‘देवशयनी एकादशी’ भी कहते हैं। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन व्रत रखकर पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जो ‘चातुर्मास’ के नाम से जाना जाता है।

चातुर्मास का समय साधना और तपस्या का समय माना जाता है। इस दौरान साधु-संत और धार्मिक अनुयायी यात्रा करने से बचते हैं और अधिक समय ध्यान, पूजा और धार्मिक क्रियाओं में व्यतीत करते हैं। यह समय स्वच्छता, आहार संयम और आत्मनिरीक्षण के लिए आदर्श होता है।

कृषि और पर्यावरण

आषाढ़ महीने का पर्यावरणीय महत्व भी बहुत बड़ा है। यह महीना मानसून के आगमन का समय होता है, जो कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसान इस समय में धान और अन्य खरीफ फसलों की बुवाई करते हैं। वर्षा का जल फसलों की सिंचाई करता है और भूमि को उपजाऊ बनाता है।

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सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष

आषाढ़ के महीने में कई लोक पर्व और मेले भी आयोजित होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख पर्व हैं आषाढ़ पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा। गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु या शिक्षक के प्रति आदर और श्रद्धा प्रकट की जाती है। लोग अपने गुरुओं की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।

इस महीने में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और धार्मिक यात्राएं भी आयोजित होती हैं। आषाढ़ महीने की फसल कटाई और मानसून की शुरुआत का स्वागत करते हुए अनेक ग्रामीण इलाकों में जश्न भी मनाया जाता है।

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