वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 20 अक्टूबर को वाराणसी प्रवास के दौरान कई महत्वपूर्ण योजनाओं की घोषणा करने वाले हैं। इसमें 2,642 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले सिग्नेचर ब्रिज का शिलान्यास भी शामिल है, जो वाराणसी की विकास यात्रा में एक नया मील का पत्थर साबित होगा। इस परियोजना की मंजूरी कैबिनेट द्वारा दी जा चुकी है और बजट भी पास कर दिया गया है।
इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 2,642 करोड़ रुपये (लगभग) है और यह चार वर्षों में पूरी होगी।सिग्नेचर ब्रिज मालवीय पुल से मात्र 50 मीटर की दूरी पर गंगा नदी पर बनाया जाएगा। यह ब्रिज लगभग एक किलोमीटर लंबा होगा और इसकी सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि इसमें सिक्सलेन सड़क के साथ चार लेन का रेलवे ट्रैक भी होगा। यह देश का पहला ऐसा पुल होगा, जिसमें सड़क और रेलवे ट्रैक दोनों एक ही संरचना में होंगे। इस परियोजना को 2028 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
इस ब्रिज का निर्माण मालवीय पुल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आवश्यक हो गया है। मालवीय पुल का निर्माण 1887 में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान हुआ था, और वर्तमान में उसकी स्थिति काफी जर्जर हो चुकी है। पिछले लगभग डेढ़ दशक से इस पुल पर भारी वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित है। ऐसे में नए सिग्नेचर ब्रिज का निर्माण वाराणसी और उसके आस-पास के क्षेत्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आज रेल मंत्रालय की इस परियोजना को मंजूरी दे दी है, जिसकी कुल अनुमानित लागत 2,642 करोड़ रुपये (लगभग) है। यह प्रस्तावित मल्टी-ट्रैकिंग परियोजना भारतीय रेलवे के सबसे व्यस्त खंडों पर आवश्यक बुनियादी ढांचागत विकास उपलब्ध कराते हुए परिचालन को आसान बनाएगी और भीड़भाड़ को कम करेगी। यह परियोजना उत्तर प्रदेश के वाराणसी और चंदौली जिलों से होकर गुजरेगी।
वाराणसी रेलवे स्टेशन जो भारतीय रेलवे का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। यह रेलवे स्टेशन प्रमुख क्षेत्रों को जोड़ता है और तीर्थयात्रियों, पर्यटकों एवं स्थानीय आबादी के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। यात्री और माल ढुलाई, दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण वाराणसी-पं. दीन दयाल उपाध्याय (डीडीयू) जंक्शन मार्ग कोयला, सीमेंट एवं खाद्यान्न जैसे सामानों के परिवहन के साथ-साथ बढ़ते पर्यटन एवं उद्योग जगत की मांगों को पूरा करने में अपनी भूमिका के कारण भारी भीड़भाड़ का सामना करता है। इस समस्या के समाधान के लिए, बुनियादी ढांचे के उन्नयन की आवश्यकता है, जिसमें गंगा नदी पर एक नया रेल-सह-सड़क सेतु और तीसरी एवं चौथी रेलवे लाइनों का निर्माण शामिल है। इन संवर्द्धनों का उद्देश्य क्षमता व दक्षता को बेहतर बनाना और इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में सहायता करना है। इस खंड में भीड़भाड़ से राहत के अलावा, प्रस्तावित खंड पर 27.83 एमटीपीए माल ढुलाई का अनुमान है।
यह परियोजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नए भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो इस क्षेत्र में व्यापक विकास के माध्यम से क्षेत्र के लोगों को “आत्मनिर्भर” बनाएगी जिससे उनके रोजगार/स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
यह परियोजना मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी से संबंधित पीएम-गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का परिणाम है, जो समन्वित योजना निर्माण के माध्यम से संभव हुआ है और लोगों, वस्तुओं एवं सेवाओं की आवाजाही के लिए निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।
पर्यावरण के अनुकूल और ऊर्जा के मामले में किफायती परिवहन का साधन होने के कारण, रेलवे जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने और देश की लॉजिस्टिक्स की लागत एवं कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन (149 करोड़ किलोग्राम), जो छह करोड़ पेड़ों के रोपण के बराबर है, को कम करने में मदद करेगा।
गंगा नदी पर बनने वाले इस सिग्नेचर ब्रिज का नाम उसकी अनूठी डिजाइन के कारण रखा गया है। इसमें आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा और इसे क्षेत्र के परिवहन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से तैयार किया जा रहा है। इस परियोजना के लिए उत्तर रेलवे, नगर निगम, जलकल विभाग और अन्य संबंधित विभागों के बीच आपसी समन्वय की पुष्टि भी हो चुकी है।