दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने मुख्यमंत्री आतिशी को पत्र लिखते हुए दिल्ली सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य विधायी प्रक्रिया के अनुसार, एक वर्ष में कम से कम तीन सत्रों के लिए विधानसभा का सत्र बुलाया जाना चाहिए। लेकिन दिल्ली सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में केवल पाँच सत्र बुलाए हैं। उपराज्यपाल ने इसे विधायी प्रथा का मजाक बताया है।
सीएजी रिपोर्ट पेश करने में जानबूझकर की गई चूक
सक्सेना ने अपने पत्र में आरोप लगाया कि पिछले दो वर्षों में 14 सीएजी रिपोर्ट पेश करने में निर्वाचित सरकार ने जानबूझकर चूक की है। उन्होंने मुख्यमंत्री से इस चूक के लिए जवाबदेही तय करने और विधानसभा में सीएजी रिपोर्ट पेश करने के लिए 19 या 20 दिसंबर को विशेष सत्र बुलाने की सलाह दी।
स्थगित सत्र को लेकर भी उठाए सवाल
उपराज्यपाल ने दिल्ली विधानसभा के पाँचवें सत्र के तीसरे भाग पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसे 4 दिसंबर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था, लेकिन अभी तक इसे समाप्त घोषित नहीं किया गया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि सदन का नेता होने के नाते, स्पीकर के परामर्श से सीएजी रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखने के लिए विशेष बैठक बुलाना उनकी जिम्मेदारी है।
विधानसभा कार्यकाल और चुनाव पर ध्यान
उपराज्यपाल ने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि वर्तमान विधानसभा और निर्वाचित सरकार का कार्यकाल फरवरी 2025 में समाप्त हो जाएगा। ऐसे में रिपोर्ट को पेश करने में देरी करना उचित नहीं है, खासकर जब अगले विधानसभा चुनाव करीब हैं।
भाजपा ने दायर की उच्च न्यायालय में याचिका
विपक्षी भाजपा विधायकों ने इस मामले को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। भाजपा ने सरकार से सीएजी रिपोर्ट पेश करने की मांग की है। विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यदि 48 घंटे के भीतर रिपोर्ट पेश करने के लिए विशेष सत्र नहीं बुलाया गया, तो भाजपा फिर से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी।
निष्कर्ष
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच यह विवाद न केवल विधायी प्रक्रियाओं के पालन की आवश्यकता को उजागर करता है, बल्कि विधानसभा में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व पर भी प्रकाश डालता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले पर क्या कदम उठाती है।