मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस रेलवे स्टेशन करने का निर्णय 2020 में लिया गया। यह परिवर्तन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण किया गया, जिससे स्टेशन का नाम वाराणसी की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को दर्शा सके। वाराणसी, जिसे काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और इसका पौराणिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है।
नाम परिवर्तन की प्रक्रिया आधिकारिक रूप से जुलाई 2020 में शुरू हुई, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने इस प्रस्ताव को केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी, और इस प्रकार मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम आधिकारिक रूप से बनारस रेलवे स्टेशन रख दिया गया। इस परिवर्तन के पीछे प्रमुख कारण यह था कि बनारस नाम से लोग वाराणसी को बेहतर पहचानते हैं और यह नाम धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक प्रासंगिक है।
नाम परिवर्तन के बाद, रेलवे स्टेशन के संकेत बोर्ड, टिकटिंग प्रणाली और अन्य आधिकारिक दस्तावेजों में बदलाव किए गए। इसके साथ ही, स्थानीय जनता और यात्रियों को नए नाम से परिचित कराने के लिए विभिन्न जागरूकता अभियानों का आयोजन भी किया गया। इस परिवर्तन से यात्रियों को वाराणसी के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को समझने में आसानी होगी, और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
यह कदम सरकार की उस नीति का हिस्सा है जिसके तहत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व वाले स्थानों के नाम को उनकी प्राचीन पहचान के साथ जोड़ा जा रहा है। मंडुवाडीह का नाम बदलकर बनारस करने का निर्णय इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। वाराणसी का नाम बनारस से जोड़ने से न केवल स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान हुआ, बल्कि देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी एक स्पष्ट और प्राचीन पहचान मिली।
नाम परिवर्तन के बाद, स्टेशन पर यात्री सुविधाओं को भी सुधारने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाई गईं। बनारस रेलवे स्टेशन को आधुनिक बनाने के लिए कई परियोजनाओं पर काम शुरू किया गया, जिससे यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें और वाराणसी आने वाले पर्यटकों को अच्छा अनुभव हो।
इस प्रकार, मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बनारस करने का निर्णय एक सुविचारित और महत्वपूर्ण कदम था, जो वाराणसी के गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान देने के उद्देश्य से लिया गया। इस परिवर्तन ने स्थानीय जनता और यात्रियों के बीच सकारात्मक प्रभाव डाला और वाराणसी की पहचान को और मजबूत किया।