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वृंदा-विष्णु लांवा फेरे | Vrinda-Vishanu Lavaan Fere

वृंदा–विष्णु लांवा फेरे भजन दिव्य मिलन का अद्भुत प्रतीक है, जहाँ श्रद्धा और प्रेम का संगम होता है। इस भजन को सुनते हुए मन भगवान के पवित्र चरणों में समर्पित हो जाता है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है। भक्तजन इसे गाकर अपने जीवन को आध्यात्मिक आनंद और भक्ति रस से सराबोर करते हैं।

Vrinda-Vishanu Lavaan Fere

वृंदा-विष्णु लांवा फेरे

   धुन:  रेश्मी सलवार ते कुर्ता जाली दा ।

     बैठे दोनों सज-धज, नेड़े नेड़े ने।

                होंण लगे वृंदा-विष्णु दे फेरे ने॥

इक सांवरा ते इक गोरी। बड़ी सुन्दर सोहनी जोडी॥

                      चर्चे इस जोड़ी दे चार चुफेरे ने – होंण लगे….

वृंदा वरमाला पाई। वृंदा वरयो हरिराई॥

                     बरसे रंग रस कलियां फुल बथेरे ने – होंण लगे…..

मंगल धुन वेदां गाई। हर वैदिक रीत निभाई॥

                   वर वधु ने लए वेदी दे फेरे ने – होंण लगे……

होई शगणां नाल विदाई। डोली बैकुंठ विच आई॥

                  गीत ‘‘मधुप’’ दे गूंजे चार चुफेरे ने – होंण लगे…..  ।

वृंदा–विष्णु लांवा फेरे भजन में समर्पण और भक्ति का अनमोल संदेश छिपा है। इसके सुरों में डूबकर मनुष्य सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर प्रभु से जुड़ जाता है। यह भजन हर श्रोता को आध्यात्मिक आनंद, शांति और ईश्वर के सान्निध्य का अद्भुत अनुभव कराता है।

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