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आधुनिक विज्ञान और भारतीय प्रज्ञान का युग्म परिणति है जपसूत्रम् – स्वामीप्रत्यगात्मानन्द सरस्वती प्रणीत जपसूत्रम् ग्रन्थ का विमोचन

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संस्कृतभारती, काशी प्रान्त द्वारा इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, क्षेत्रीय केन्द्र वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में स्वामी प्रत्यगात्मानन्द सरस्वती प्रणीत “जपसूत्रम्” ग्रन्थ का विमोचन, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सभागार में 29 सितम्बर 2024 को किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ संस्कृतभारती के छात्रों द्वारा वैदिक मंगलाचरण तथा माँ सरस्वती के माल्यार्पण से हुआ। संस्कृतभारती, काशी प्रान्त के कोषाध्यक्ष श्री अनिल नारायण किंजवडेकर ने अतिथियों का परिचय प्रदान किया तदुपरांत आगंतुक अतिथियों को सम्मानित किया गया।
प्रोफेसर गोपबन्धु मिश्र जी ने जपसूत्र का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि यह सूत्र परम्परा का एक अद्भुत ग्रन्थ है। आधुनिक विज्ञान और भारतीय प्रज्ञान का युग्म परिणति है जपसूत्रम्। इस अवसर पर जपसूत्रम् ग्रन्थ के प्रथम खण्ड का विमोचन विद्वानों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. ऊर्मिला शर्मा ने विदुषी प्रेमलता शर्मा की बहुआयामी संकल्पना के विषय में उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी इच्छा थी इस ग्रन्थ के सम्पूर्ण प्रकाशन करने की। उनके इस संकल्पना को पूर्ण करने का यह एक लघु प्रयास है। कार्यक्रम में विशिष्ट मुख्य अतिथि पद को अलंकृत कर रहे पूर्व वेदविभागाध्यक्ष, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रो. हृदयरंजन शर्मा ने व्याख्यायित किया कि भारतीय अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान पर प्रामाणिकता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। इस ग्रन्थ में ऐसे अनेक तत्त्व सम्मिलित हैं, जिससे युवाओं को अपने जीवन-दर्शन को समझने में सहजता होगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री सुरेश सोनी ने कहा कि लोक में तन्त्र के विषय में जो धारणा है वह अपूर्ण है। अतः हमारे शास्त्र में निहित गूढ अर्थ को समाज के समक्ष सही-सही प्रस्तुत करना भारतीय विद्वानों का परम कर्तव्य है। श्री सोनी ने अपने वक्तव्य में तन्त्र और मन्त्र के महत्त्व को उद्घाटित करते हुए कहा कि तन्त्र एक प्रक्रिया है जबकि मन्त्र एक साधन है। अतः इसके महत्त्व को इस ग्रन्थ के अनुशीलन से समझा जा सकता है। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, क्षेत्रीय निदेशक, डॉ. अभिजित् दीक्षित ने कहा कि वाक् मन और प्राण के मूल का समन्वयन ही जप का मूल है तथा अनुभूति क्रिया द्वारा वाक् सत्ता को चेतना से आत्मतत्त्व को निदर्शित किया जा सकता है। उन्होंने इस ग्रन्थ के सम्पूर्ण आयामों पर विशिष्ट विद्वानों के सान्निध्य में संगोष्ठी तथा सेमिनार के माध्यम से आलोकिन भी प्रस्तावित किया। कार्यक्रम का संचालन कला केन्द्र के डॉ रजनीकान्त त्रिपाठी द्वारा किया गया।
उक्त कार्यक्रम में प्रोफेसर ऋत्विक सान्याल, प्रोफेसर भगवत् शरण शुक्ल, प्रोफेसर कृष्णकांत शर्मा, प्रोफेसर राकेश पाण्डेय, प्रोफेसर गोपबन्धु मिश्र, प्रोफेसर फूलचंद जैन, प्रोफेसर प्रद्युम्न शाह सिंह, प्रोफेसर कमला पाण्डेय, डा. श्री प्रकाश पाण्डेय, डॉ स्वरवन्दना शर्मा, डॉ प्रीति वर्मा, डॉ दामिनी आर्या, डॉ प्रियंका सिंह, डॉ ओमप्रकाश सिंह, आदि विद्वानों सहित संस्कृत भारती के वरिष्ठ सदस्यों तथा काशी के विभिन्न कलासुधियों एवं विद्वानों के अतिरिक्त काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।

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