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Sunderkand lyrics | सुंदरकांड लिरिक्स

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“सुंदरकांड” श्रीराम के जीवन से जुड़ा एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अंश है, जिसे रामायण के संकटमोचन भाग के रूप में जाना जाता है। इस भाग में भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान जी की वीरता और भक्ति का अद्वितीय वर्णन है। सुंदरकांड के गीत और श्लोक न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ाते हैं, बल्कि जीवन में साहस, धैर्य और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं। सुंदरकांड के भावपूर्ण शब्द हर किसी के दिल में एक अलग ऊर्जा का संचार करते हैं। आज हम सुंदरकांड के कुछ महत्वपूर्ण बोल और उनके अर्थ पर चर्चा करेंगे, जो हमें जीवन के हर संकट से जूझने की शक्ति प्रदान करते हैं।

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सुंदरकांड लिरिक्स

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान,
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।

जय हनुमंत संत हितकार, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी,
जन के काज बिलंब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै।

जैसे कूदि सिंधु महिपारा, सुरसा बदन पैठि बिस्तारा,
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुरलोका।

जाय बिभीषन को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा,
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा, अति आतुर जमकातर तोरा।

अक्षय कुमार मारि संहारा, लूम लपेटि लंक को जारा,
लाह समान लंक जरि गई, जय-जय धुनि सुरपुर नभ भई.

अब बिलंब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अंतरयामी,
जय-जय लखन प्रान के दाता, आतुर ह्वै दुख करहु निपाता।

जय हनुमान जयति बल-सागर, सुर-समूह-समरथ भट-नागर,
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले, बैरिहि मारु बज्र की कीले।

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा, ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा,
जय अंजनि कुमार बलवंता, शंकरसुवन बीर हनुमंता।

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बदन कराल काल-कुल-घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक,
भूत, प्रेत, पिसाच निसाच, र अगिन बेताल काल मारी मर।

इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की, राखु नाथ मरजाद नाम की,
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै, राम दूत धरु मारु धाइ कै।

जय-जय-जय हनुमंत अगाधा, दुख पावत जन केहि अपराधा,
पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत कछु दास तुम्हारा।

बन उपबन मग गिरि गृह माहीं, तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं,
जनकसुता हरि दास कहावौ, ताकी सपथ बिलंब न लावौ।

जै जै जै धुनि होत अकासा, सुमिरत होय दुसह दुख नासा,
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं, यहि औसर अब केहि गोहरावौं।

उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई, पायँ परौं, कर जोरि मनाई,
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता, ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता।

ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल, ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल,
अपने जन को तुरत उबारौ, सुमिरत होय आनंद हमारौ।

यह बजरंग-बाण जेहि मारै, ताहि कहौ फिरि कवन उबारै,
पाठ करै बजरंग-बाण की, हनुमत रक्षा करै प्रान की.

यह बजरंग बाण जो जापैं, तासों भूत-प्रेत सब कापैं,
धूप देय जो जपै हमेसा, ताके तन नहिं रहै कलेसा।

…ताके तन नहिं रहै कलेसा,
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

सुंदरकांड के श्लोकों का पाठ करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करता है। हनुमान जी की भक्ति और साहस को अपनी ज़िन्दगी में उतारने का यह सबसे अच्छा तरीका है। सुंदरकांड के हर श्लोक में छिपे गहरे अर्थ हमें मुश्किल समय में मार्गदर्शन और आत्मविश्वास प्रदान करते हैं। इसे नियमित रूप से पढ़ने से न सिर्फ भक्ति बढ़ती है, बल्कि जीवन में स्थिरता और सफलता भी मिलती है। तो आइए, हम सभी इस पवित्र ग्रंथ का श्रद्धापूर्वक पाठ करें और अपने जीवन को सशक्त और सुखमय बनाएं।

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Aditya