“शांत दुर्गेची आरती” एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली आरती है, जो देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का बखान करती है। यह आरती विशेष रूप से महाराष्ट्र और अन्य हिस्सों में बड़े श्रद्धा भाव से गाई जाती है। देवी दुर्गा, जो कि अच्छाई की प्रतीक मानी जाती हैं, उनकी आराधना में यह स्तुति गीत भक्तों के दिलों को शांति और समृद्धि का अहसास कराता है। शांति और सुरक्षा की कामना करते हुए यह आरती देवी दुर्गा की अनंत शक्तियों को सम्मानित करती है और भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने की प्रार्थना करती है।
शांता दुर्गेची आरती
जय देवी जय देवी जय शांते जननी,
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी॥
भूकैलासा ऐसी ही कवला नगर,
शांतादुर्गा तेथे भक्तभवहारी॥
असुराते मर्दुनिया सुरवरकैवारी,
स्मरती विधीहरीशंकर सुरगण अंतरी॥
जय देवी जय देवी जय शांते जननी ,
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी॥
प्रबोध तुझा नव्हे विश्वाभीतरी
नेति नेति शब्दे गर्जती पै चारी,
साही शास्त्रे मथिता न कळीसी निर्धारी,
अष्टादश गर्जती परी नेणती तव थोरी॥
जय देवी जय देवी जय शांते जननी,
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी॥
कोटी मदन रूपा ऐसी मुखशोभा,
सर्वांगी भूषणे जांबूनदगाभा॥
नासाग्री मुक्ताफळ दिनमणीची प्रभा,
भक्तजनाते अभय देसी तू अंबा॥
जय देवी जय देवी जय शांते जननी,
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी॥
अंबे भक्तांसाठी होसी साकार,
नातरी जगजीवन तू नव्हसी गोचर॥
विराटरूपा धरूनी करीसी व्यापार,
त्रिगुणी विरहीत सहीत तुज कैचा पार॥
जय देवी जय देवी जय शांते जननी,
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी॥
त्रितापतापे श्रमलो निजवी निजसदनी,
अंबे सकळारंभे राका शशीवदनी॥
अगमे निगमे दुर्गे भक्तांचे जननी,
पद्माजी बाबाजी रमला तव भजनी॥
जय देवी जय देवी जय शांते जननी,
दुर्गे बहुदु:खदमने रतलो तव भजनी॥
“शांत दुर्गेची आरती” सिर्फ एक धार्मिक गीत नहीं है, बल्कि यह हमारी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। जब भी जीवन में संघर्ष और कठिनाइयाँ आएं, तब इस आरती के माध्यम से देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने की भावना से मन को शांति मिलती है। यह आरती हमें यह सिखाती है कि शक्ति और शांति दोनों का संतुलन ही जीवन को सुंदर बनाता है। इसलिए, इस आरती का जाप करना न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि हमारे दिलों में देवी के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास को भी प्रगाढ़ करता है।