पटना।बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस का उद्घाटन किया। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी तय समय पर पहुंचे और उन्होंने विश्वविद्यालय की पुरानी धरोहरों को करीब से देखा। इसके बाद उन्होंने न्यू कैंपस में बौध वृक्ष लगाया और उद्घाटन समारोह को सम्पन्न किया।
नए कैंपस में इन देशों की भागीदारी
नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए कैंपस में भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों के राजदूतों ने भाग लिया। इन देशों के राजदूतों ने विश्वविद्यालय का समर्थन करने के लिए समझौता पत्रों पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा, कई देशों के छात्रों ने आगामी सत्र में पीएचडी पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन किया है। नालंदा विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए 137 स्कॉलरशिप प्रदान की हैं। विश्वविद्यालय में फिलॉसफी, बौद्ध धर्म, तुलनात्मक धर्म, इतिहास, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन के लिए विभिन्न संस्थान हैं।
नालंदा के नए कैंपस की विशेषताएं
नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस में दो अकादमिक ब्लॉक हैं, जिनमें 40 क्लासरूम हैं। यहां 2000 विद्यार्थियों के बैठने की व्यवस्था है। विश्वविद्यालय में दो ऑडिटोरियम भी हैं, जिनमें प्रत्येक में 300 सीटें हैं। इसके अलावा, एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र और एम्फीथिएटर है, जिसमें दो हजार लोग बैठ सकते हैं। छात्रों के लिए स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और फैकल्टी क्लब भी हैं। नालंदा विश्वविद्यालय का कैंपस “नेट जीरो” है, जिसका अर्थ है कि यहां पर्यावरण अनुकूल शिक्षा और गतिविधियां होती हैं। कैंपस में पानी को रिसाइकल करने के लिए एक प्लांट है, जिसमें 100 एकड़ की वॉटर बॉडीज और कई सुविधाएं हैं जो पर्यावरणीय रूप से अनुकूल हैं।
800 साल पहले तक नालंदा विश्वविद्यालय ने अनगिनत विद्यार्थियों को शिक्षा दी थी। इसे गुप्त राजवंश के राजा गुप्त प्रथम ने बनाया था। पाँचवीं सदी में निर्मित इस प्राचीन विश्वविद्यालय में लगभग 10 हजार विद्यार्थी पढ़ते थे, जिनमें 1500 शिक्षक थे। छात्रों में अधिकांश बौद्ध भिक्षु चीन, कोरिया और जापान से आते थे। इतिहासकारों के अनुसार, सातवीं सदी में चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी नालंदा से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी किताब में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता के विषय में लिखा है। यह विश्वविद्यालय हमेशा से ही बौद्ध धर्म के दो प्रमुख केंद्रों में से एक रहा है और प्राचीन भारत के ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।