

“ॐ जय गिरिराज हरि आरती” एक भक्तिमय आरती है जो भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन रूप की महिमा का गुणगान करती है। यह आरती गोवर्धन पूजा के दौरान विशेष रूप से गाई जाती है, जो कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस आरती के शब्द भक्तों के दिलों में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा और आस्था भर देते हैं। इसमें गोवर्धन पर्वत की पूजा का महत्व और श्रीकृष्ण द्वारा गोकुलवासियों की रक्षा के उस ऐतिहासिक प्रसंग को याद किया जाता है, जब उन्होंने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के कोप से सभी को बचाया था। इस आरती को गाते समय भक्तजन भक्ति और प्रेम में मग्न होकर भगवान को धन्यवाद देते हैं और उनसे जीवन में सदैव उनकी कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं।

ॐ जय गिरिराज हरि आरती
ॐ जय गिरिराज हरी,
स्वामी जय गिरिराज हरी ।
शरण तुम्हारी आये,
करुणापूर्ण करि ।। ॐ
उपल देह से प्रगटे,
भक्तन हितकारी स्वामी।
इच्छा पूरण करते,
तुम अन्तयाम। ॐ.
नील वरण तन सुन्दर,
बोलसमुद्र वाणी
प्रेम भरी हरी चितवन,
निरखत छवि ॥ ॐ…
मोर मुकुट सिर सोहत ,
मस्त पर चन्दन।
गल वैजन्ती माला,
काटे भव बन्दन।। ॐ…
जामा स्वेत मनोहर,
पटका है पीला।
अधरन वंशी बाजे,
करते नर लीला।। ऊँ…
कोप कियो जब सुरपति,
बृज पर अति भारी।
मान घटाओ तुमने,
सन्तन हितकारी ।। ॐ…
बृजवासिन से तुमने ,
गिरवर पूजवाया।
स्वयं पूजे प्रभु आपही,
दिखलायी माया ।। ॐ…
गोप गऊ ब्रज बालक,
सब के रूप धरे।
ब्रह्मा मोहे पल में,
तिन के कष्ट हरे।। ॐ…
मुरलीधर जब मुरली,
अधरन अधर धरी ।
बृजवाला सब मोहे,
इच्छा पूर्ण करि ।। ॐ…
जो बृजपति की आरती,
प्रेम सहित गावै।
भक्ति पदार्थ काशी,
मुक्ति फल पावे।। ॐ…
ॐ जय गिरिराज हरी,
स्वामी जय गिरिराज हरी ।
शरण तुम्हारी आये,
करुणा पूर्ण करि ।। ॐ…
दोहा:पार ब्रह्मा परमात्मा,
पूर्ण कृष्ण भगवान।
तुम्ही एक निरगुण सगुण,
कहते वेद पुराण |
आरथा अरथी आरती,
जिज्ञासु पार।
भक्तों के हित के लिये,
लिया मनुज अवतार |
“ॐ जय गिरिराज हरि आरती” सिर्फ एक प्रार्थना नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इसे गाने से मन को शांति मिलती है और जीवन के कठिन समय में विश्वास और धैर्य बना रहता है। इस आरती के माध्यम से भक्त अपने दुखों और परेशानियों को भगवान के चरणों में समर्पित करते हैं और उनकी दिव्य कृपा से सभी समस्याओं का समाधान प्राप्त करते हैं। गोवर्धन पूजा और गिरिराज भगवान की महिमा का गान करते हुए यह आरती हमें यह सिखाती है कि अगर हमारी आस्था सच्ची हो, तो भगवान सदा हमारे साथ हैं। जब भी मन विचलित हो, इस आरती का गान करें और अपने जीवन को भक्ति की राह पर आगे बढ़ाएं। जय श्री गिरिराज!