बिजनौर, उत्तर प्रदेश: उत्तर भारत में सर्दियों का कहर इस बार और भी तीव्र हो गया है। खासकर उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में बर्फीली सर्दी ने आम जीवन को कठिन बना दिया है। शुक्रवार को यहां तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया, जिससे पूरे क्षेत्र में कड़ी ठंड और शीतलहर का प्रकोप बढ़ गया। यह शहर और आसपास के इलाकों में इस सर्दी के सीजन का सबसे कम तापमान रहा है। ठंडी हवाएं, घना कोहरा और बर्फीली सर्दी ने लोगों की दिनचर्या को प्रभावित किया है।
यह सर्दी बिजनौर में खास तौर पर खेतिहर और गरीब वर्ग के लिए मुश्किलें लेकर आई है। जहां एक ओर लोग ठंडी से बचने के लिए अलाव के पास बैठे हैं, वहीं दूसरी ओर कई घरों में छतों से ठंडी हवाएं आ रही हैं, जिससे घर के अंदर भी ठंड का असर दिखाई दे रहा है। सड़क पर चलने वाले लोग कंबल और ऊनी कपड़े ओढ़े हुए दिख रहे हैं, और व्यापारियों का कहना है कि सर्दी के चलते ग्राहक भी कम हो गए हैं। इस सर्दी ने पूरे बिजनौर में अपने निशान छोड़े हैं और खासकर बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर असर डालने की आशंका जताई जा रही है।
कहां से आई सर्दी का यह शिकार
उत्तर भारत में हर साल दिसंबर और जनवरी महीने में सर्दी का प्रकोप बढ़ता है, लेकिन इस साल ठंड ने रिकॉर्ड तोड़ने वाली गति पकड़ी है। मौसम विभाग के अनुसार, यह सर्दी मुख्यतः पश्चिमी विक्षोभ के कारण बढ़ी है, जो उत्तर भारत में बर्फबारी का कारण बनते हैं। इसके साथ ही, हवा की दिशा भी बहुत ठंडी हो गई है, जिससे ठंड और अधिक बढ़ गई है। घने कोहरे और सर्द हवाओं ने सड़क पर यातायात को भी प्रभावित किया है, जिससे दुर्घटनाओं के होने का खतरा बढ़ गया है।
बिजनौर जिले में सोमवार से शुरू हुई सर्दी का असर लगातार बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो पिछले कुछ वर्षों में सबसे कम तापमान था। दिन के समय भी सूर्य की हल्की किरणें जरा सी राहत देने में सक्षम नहीं हो पा रही हैं, और लोग घरों में ही दुबककर रहने को मजबूर हैं।
शीतलहर से जूझते लोग
बिजनौर के नागरिकों की स्थिति और भी गंभीर हो गई है, जब शीतलहर के कारण हर किसी को अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना पड़ा। कई लोगों ने बताया कि घरों में पर्याप्त हीटिंग सिस्टम नहीं होने के कारण रात भर ठंड में सोने में कठिनाई हो रही है। वहीं, कुछ क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति भी अनियमित हो गई है, जिससे लोग अपने ही घरों में ठंड से बचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
समाज सेवी संगठनों और स्थानीय प्रशासन ने इस समस्या के समाधान के लिए कंबल और गर्म कपड़े बांटने के कार्यक्रम शुरू किए हैं। इसके साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं भी मुहैया करवाई जा रही हैं। समाजसेवियों का कहना है कि इस प्रकार की सर्दी से जूझने के लिए एकजुटता की जरूरत है।
खेतिहर और ग्रामीण इलाकों की स्थिति
इस कड़ाके की ठंड का सबसे ज्यादा असर बिजनौर के ग्रामीण इलाकों में देखने को मिला है। खेतिहर मजदूर जो ठंड के बावजूद अपने काम में जुटे रहते हैं, वे इस समय बहुत मुश्किल में हैं। सुबह के समय, खेतों में काम कर रहे लोग अपनी उंगलियों को सिकोड़कर काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। इस दौरान, उन्हें ठंड से बचने के लिए कंबल या गर्म कपड़े जैसे साधन चाहिए होते हैं, लेकिन गरीबी के कारण उनके पास इसे खरीदने का साधन नहीं है। यह स्थिति उनके लिए न केवल शारीरिक रूप से कठिनाई पैदा कर रही है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाल रही है।
बिजनौर जिले के कई किसान भी इस सर्दी से प्रभावित हो रहे हैं। सर्दी के कारण कई फसलों में बढ़ने वाली समस्याओं के साथ-साथ उन्हें अपनी जानवरों की देखभाल में भी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। गायों और बकरियों को गर्म रखने के लिए उन्हें अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है, जो कई किसानों के लिए महंगा साबित हो सकता है। इस सबके बावजूद, किसानों का कहना है कि इस कड़ी सर्दी में उनकी फसलें खराब हो सकती हैं, जिससे आर्थिक नुकसान भी हो सकता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
बिजनौर जिले में इस सर्दी का सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ा है। अस्पतालों में सर्दी से जुड़ी बीमारियों जैसे सर्दी-जुकाम, बुखार, अस्थमा, निमोनिया आदि के मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। विशेष रूप से बुजुर्गों को ठंड से बचाना एक बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम पहले से ही कमजोर होता है। डॉक्टरों का कहना है कि इस मौसम में सांस की बीमारियों के बढ़ने का खतरा रहता है, और ऐसे में लोगों को घर में ही रहने की सलाह दी जा रही है।
किसानों के लिए राहत
इस कड़ी सर्दी के बीच, उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन ने किसानों के लिए राहत की कोशिशें तेज कर दी हैं। सरकार ने ठंड से प्रभावित क्षेत्रों के लिए फसल बचाव अभियान शुरू किया है, ताकि किसानों को ठंड से होने वाली क्षति से बचाया जा सके। इसके साथ ही, पशुपालकों के लिए भी राहत योजनाएं बनाई जा रही हैं, ताकि वे अपने मवेशियों को इस ठंड से बचा सकें।