गायत्री मंत्र को वेदों की जननी कहा जाता है। यह मंत्र केवल एक स्तुति नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने और चेतना को जागृत करने का एक अत्यंत प्रभावशाली साधन है। ॐ भूर्भुवः स्वः… से शुरू होने वाला यह मंत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियों को समाहित करता है। इस लेख में हम Gayatri Mantra Chanting की विधि, लाभ और उसका आध्यात्मिक महत्व विस्तार से जानेंगे।
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्व:, तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो,
देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात् ।
गायत्री मंत्र केवल शब्दों का समुच्चय नहीं है, यह एक चेतन शक्ति है जो जीवन में उजाला भर देती है। जो व्यक्ति नियमित रूप से श्रद्धा और नियम से इसका जाप करता है, उसके जीवन में आत्मिक बल, शांति और दिव्यता का समावेश हो जाता है। अब समय है कि हम सब भी इस मंत्र की शक्ति को समझें और उसे अपने जीवन में अपनाएं।
जाप की विधि
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान करें।
- शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- अपने सामने जल से भरा एक तांबे का लोटा रखें।
- हाथ में कुश या रुद्राक्ष की माला लें।
- आँखें बंद कर हृदय से गायत्री माता का ध्यान करें।
- मंत्र का उच्चारण धीमे और स्पष्ट स्वर में करें।
- कम से कम 108 बार (एक माला) जाप करें।
- जाप के बाद गायत्री माता से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
जाप के लाभ
- मानसिक शांति – यह मंत्र मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद को दूर करता है।
- बुद्धि एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि – विद्यार्थियों के लिए यह मंत्र विशेष रूप से लाभकारी है।
- शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि – इसके जाप से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- आध्यात्मिक विकास – आत्मा की शुद्धि और उच्च चेतना की प्राप्ति में सहायक।
- पापों का क्षय – नियमित जाप से जीवन के दोष और पाप धीरे-धीरे नष्ट होते हैं।
- सकारात्मक वातावरण – जहां नियमित जाप होता है, वहां का वातावरण शुद्ध और दिव्य होता है।