RS Shivmurti

भगवान को भूल जाना ही सबसे बड़ा विपत्ति है

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शिवपुर भगवान को भूल जाना ही सबसे बड़ा विपत्ति है मनुष्य जीवन में, और उन्हे सदैव स्मरण रखना सबसे महत्वपूर्ण सम्पत्ति है। इसलिये मनुष्य को जीवन में सदैव नारायण का नाम स्मरण रखना चाहिए। शिवपुर रामलीला मैदान में आयोजित संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचन के दौरान कथा वाचिका शिवांगी किशोरी जी ने बताया कि भागवत कथा को वेदों उपनिषदों का सार बताते हुए उन्होने कहा कि भागवत कथा का अर्थ भगवान के भक्त की कथा है।

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भागवत का मतलब ही भगवान का भक्त होता है। यदि यह भगवान की कथा होती, तो इसे भगवत कथा कहते। और यह कथा सुपात्र व्यक्ति को ही सुनाई जाती है। उन्होने कहा कि भगवान वेदव्यास जी ने अपने सुपुत्र शुकदेव जी को यह कथा सुनाई सुपात्र समझकर। तत्पश्चात श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद भागवत की कथा का रसपान कराया, तब जाकर राजा को मुक्ति मिली। कथा का विस्तार करती हुई शिवांगी किशोरी जी ने कहा कि द्वारका में यदुकुल के नष्ट हो जाने का समाचार जब अर्जुन ने अपनी माता कुन्ती व युधिष्ठिर सहित अन्य भाइयों को दिया, तो माता कुन्ती ने तत्काल अपने प्राण त्याग दिये।

फिर महाराज युधिष्ठिर भी अभिमन्यु पुत्र बालक परीक्षित को राजगद्दी सौप कर भाइयों सहित हिमालय पर्वत की ओर प्रस्थान कर गये। राजा परीक्षित राज्य करने लगे। फिर कलियुग का आगमन हुआ। कलियुग ने धर्मात्मा राजा परीक्षित से अपने लिए स्थान मांगा, तो राजा ने उसे जुआ, मदिरा, व्यभिचार और स्वर्ण में वास करने को कहा। सन्त प्रवर ने कहा कि आज इन्ही चार चीजों में कलियुग का वास है, इसलिये इनके मोह से बचना चाहिये। उन्होने कहा कि राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में कलियुग विराजमान हो गया। एक दिन राजा परीक्षित वन में भ्रमण करते अपने साथियों से बिछुड़ कर अकेले हो गये। तभी एक स्थान पर उन्होने एक ऋषि को तप करते ध्यानमग्न देखा। उनसे कुछ पूछा, किन्तु ध्यानमग्न होने के कारण ऋषि की तंद्रा नही टूटी। फिर राजा ने कलियुग के प्रभाव में आकर ऋषि के गले में वहीं पास में मरा पड़ा साप लपेट दिया और महल वापस लौट आये। जब उन्होने सिर से मुकुट उतारा तब उन्हे अपनी गलती का अहसास हुआ। उधर ऋषि के पुत्र ने जब लौटकर पिता के गले में लिपटे मृत साप को देखा, और ध्यान लगाया, तो उन्हे राजा परीक्षित की करतूत का पता चल गया। ऋषि कुमार ने क्रोधित होकर राजा को शाप दे दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से राजा की मृत्यु होना निश्चित है। अन्ततः अपने द्वारा किये गये इस पाप के निवारण हेतु राजा परीक्षित ने ऋषि श्रेष्ठ श्री शुकदेव जी महाराज के मुख से श्रीमद भागवत महापुराण की कथा का श्रवण किया, और उन्हे सातवें दिन मुक्ति मिली।

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कथा वाचिका ने कहा कि कलियुग में श्रीमद भागवत महापुराण की कथा ही मुक्तिदायिनी है। उन्होने कहा कि आत्म नियन्त्रण रखना हर दृष्टि से लाभदायक है। आहार शुद्धि जीवन की सबसे बड़ी शुद्धि है। और यह बाल्यावस्था से ही निर्देशित होना चाहिए। क्योंकि आप जैसा आचरण करोगे, आपका बालक भी उसका अनुसरण करेगा। सन्त प्रवर ने स्त्री को धर्म का मूल बताया, कहा कि इसीलिए नारी को धर्मपत्नी कहा जाता है।
कथा के प्रारम्भ में मुख्य यजमान विनोद कुमार दुबे, प्रचार मंत्री कमलेश केशरी, कोषाध्यक्ष आनंद अग्रवाल, डाक्टर अजय मिश्रा, महंत रामदास त्यागी,व्यासपीठ का पूजन किया। अन्त में श्रीमद भागवत महापुराण ग्रन्थ की आरती उतारी। इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालु श्रोता स्त्री पुरूष मौजूद रहे।

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Aditya