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धनंजय सिंह और बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह का वोटर लिस्ट में एक ही मकान संख्या दर्ज, अमिताभ ठाकुर ने जांच की मांग की

जौनपुर जिले की राजनीति में एक नया विवाद उस समय उभर आया जब आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने पूर्व सांसद धनंजय सिंह और बर्खास्त सिपाही आलोक प्रताप सिंह के नाम को एक ही मकान संख्या में दर्ज पाए जाने पर गंभीर सवाल उठाए। ठाकुर ने इस मामले को अत्यंत संवेदनशील बताते हुए इसकी उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है।

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और डीजीपी को भेजी गई अपनी विस्तृत शिकायत में अमिताभ ठाकुर ने कहा कि उनके पास विधानसभा क्षेत्र 367 मल्हनी, जौनपुर के अनुभाग संख्या 1, बनसफा का एक कथित वोटर लिस्ट उपलब्ध हुआ है। इस सूची के अनुसार क्रम संख्या 115 पर धनंजय सिंह के भाई जितेंद्र सिंह, 116 पर उनकी पत्नी श्रीकला सिंह और 118 पर स्वयं धनंजय सिंह का नाम दर्ज है। इसी वोटर लिस्ट में क्रम संख्या 120 पर आलोक प्रताप सिंह का नाम भी दर्ज है, जो कथित रूप से वही बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह बताए जा रहे हैं।

अमिताभ ठाकुर का कहना है कि एक ही मकान संख्या पर इन दोनों व्यक्तियों का दर्ज होना प्रथमदृष्टया संदिग्ध प्रतीत होता है और यह चुनावी पारदर्शिता व निष्पक्षता के दृष्टिकोण से एक गंभीर मामला है। उन्होंने कहा कि किसी प्रभावशाली राजनीतिक परिवार और एक बर्खास्त पुलिसकर्मी का एक ही पते पर पंजीकृत होना कई तरह के प्रश्न खड़े करता है, जिनका समाधान केवल निष्पक्ष जांच के माध्यम से ही संभव है।

ठाकुर ने अपनी शिकायत के साथ कथित वोटर लिस्ट की प्रति भी मुख्य सचिव एवं डीजीपी को भेजी है, ताकि मामले की गहराई से जांच की जा सके। उन्होंने कहा कि यदि यह त्रुटि लापरवाही का परिणाम है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, और यदि यह किसी प्रकार की हेराफेरी का संकेत देता है, तो इसकी सच्चाई सामने आनी आवश्यक है।

आजाद अधिकार सेना की प्रवक्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने भी मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इस प्रकार की विसंगतियों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट कहा कि पार्टी निष्पक्ष जांच और जिम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई की मांग करती है।

यह विवाद सामने आने के बाद अब स्थानीय प्रशासन और चुनाव आयोग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जांच के बाद सामने आने वाले तथ्य किस दिशा में इशारा करते हैं और क्या यह मामला एक सामान्य त्रुटि साबित होता है या किसी बड़ी अनियमितता का संकेत।

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