
दाती दा सजेया ऐ दरबार जी बधाई होवे भजन सुनते ही मन भक्ति से भर उठता है और वातावरण में दिव्यता का संचार हो जाता है। मां के दरबार की सजावट, भक्तों का उल्लास और भजन की मधुर ध्वनि मिलकर ऐसा आभास कराते हैं जैसे स्वयं मां का आशीर्वाद हर ओर बरस रहा हो। यह भजन मां की महिमा का अनुपम चित्रण है।
Dati Da Sajeya Hai Darbar Ji Vadhayi Hove
दाती का सजा है दरबार
दाती का, सजा है दरबार, जी बधाई होवे।
दाती की, बोलो जय जयकार, जी बधाई होवे।
देवूं मैं, बधाई सौ-सौ बार, जी बधाई होवे।
फूलों की, छाई है बहार, जी बधाई होवे।
पहली बधाई गौरी, नंदन को होवे।
जिन्होंने, पूर्ण किए काज, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई ब्रह्मा, विष्णु को होवे।
जिन्होंने, रचा यह संसार, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई गौरी, शंकर को होवे।
जिनका, डमरू बजे आज, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई सीता, राम को होवे।
जिनका, पाया नहीं पार, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई राधे, श्याम को होवे।
जिनकी, बंसी बजे आज, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई शेरों, वाली को होवे।
जोतें, जगाई श्रद्धा से, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई लंगर, वीर को होवे।
माता का, सच्चा सेवक, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई मेरे, सतगुरु को होवे।
जिनका, पाया आशीर्वाद, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई सारे, देवताओं को होवे।
जिन्होंने, की जय जयकार, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई घर, वालों को होवे।
कीर्तन, कराया श्रद्धा से, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फिर बधाई सारी, संगत को होवे।
जिन्होंने, गाया मंगलाचार, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
देकर बधाई संगतें, घरों को चलीं।
सुखी, बसे यह परिवार, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
फूलो फलो और, सुखी रहो सब।
जिन्हें, चढ़ा यह खुमार, जी बधाई होवे।
दाती का, सजा है दरबार…
दाती दा सजेया ऐ दरबार जी बधाई होवे केवल सुर और शब्दों का मेल नहीं, बल्कि भक्तों की गहरी आस्था और मां की कृपा का प्रतीक है। इसे सुनकर आत्मा को शांति, मन को बल और हृदय को भक्ति की अनुभूति प्राप्त होती है। यह भजन हमें याद दिलाता है कि मां के दरबार में सजने वाला हर क्षण भक्त के जीवन में सौभाग्य और आनंद का संदेश लेकर आता है।

