छठ पूजा, हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसमें सूर्य देवता और छठी मइया की उपासना की जाती है। विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाने वाला यह पर्व अब देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में व्रती महिलाएं कठोर उपवास रखकर सूर्य देवता से परिवार की सुख-समृद्धि और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं।
इस पर्व की सबसे खास परंपरा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की प्रथा है। छठ पूजा के तीसरे दिन, जिसे संध्या अर्घ्य के रूप में जाना जाता है, व्रती महिलाएं पानी में खड़े होकर सूर्यास्त के समय अर्घ्य देती हैं। इस अवसर पर महिलाएं गंगा, यमुना, सरयू, या किसी पवित्र नदी या तालाब के किनारे एकत्र होकर पूजा-अर्चना करती हैं। अपने हाथों में नारियल, फल, और अन्य पूजन सामग्री लेकर, वे श्रद्धा भाव से सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं।
इस दौरान महिलाएं व्रत रखकर और कठिन नियमों का पालन करते हुए परिवार के लिए रोगों और दुखों के नाश की कामना करती हैं। सूर्य देवता और छठी मइया को धन्यवाद देते हुए महिलाएं उनसे सुख-शांति, संतान प्राप्ति, और सभी प्रकार की विपदाओं से मुक्ति का आशीर्वाद मांगती हैं। उनका विश्वास होता है कि इस पूजा के माध्यम से उनके जीवन में खुशहाली और समृद्धि आएगी।
अंतिम दिन प्रातःकाल में उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन होता है। यह पूजा, न सिर्फ आस्था और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि परिवार और समाज के लिए प्रेम और समर्पण का भी उदाहरण है। इस पर्व के माध्यम से लोग एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं और सामूहिक रूप से उत्सव मनाते हैं, जो भारतीय संस्कृति की अनोखी विशेषता है।