वाराणसी के बहुचर्चित नदेसर टकसाल शूटआउट मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने 2002 में हुए इस जानलेवा हमले से जुड़े गैंगस्टर एक्ट केस में ट्रायल कोर्ट के बरी करने के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि गैंगस्टर एक्ट के तहत दायर अपराध समाज के खिलाफ माने जाते हैं, और ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता व्यक्तिगत रूप से ‘पीड़ित’ की श्रेणी में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि असामाजिक गतिविधियों पर रोक लगाना राज्य का संवैधानिक दायित्व है और कोई भी व्यक्ति इस जिम्मेदारी को अपने हाथ में लेने का हकदार नहीं।
23 साल पुराना मामला, वाराणसी का पहला ‘ओपन शूटआउट’
यह घटना 4 अक्टूबर 2002 की है, जब वाराणसी के कैंट थाना क्षेत्र स्थित नदेसर के टकसाल सिनेमा हॉल के पास तत्कालीन विधायक धनंजय सिंह की गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग हुई थी।
हमले में AK-47 जैसी ऑटोमेटिक राइफलों के इस्तेमाल का आरोप लगा, जिसे शहर का पहला “ओपन शूटआउट” माना गया।
इस हमले में धनंजय सिंह सहित उनके गनर और ड्राइवर घायल हुए थे। उन्होंने बाहुबली विधायक अभय सिंह, एमएलसी विनीत सिंह, संदीप सिंह, संजय सिंह, विनोद सिंह, सतेंद्र सिंह उर्फ बबलू समेत कई अज्ञात लोगों पर गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज कराया था।
ट्रायल कोर्ट का फैसला और हाईकोर्ट की कसौटी
29 अगस्त 2025 को वाराणसी के स्पेशल जज (गैंगस्टर एक्ट) सुशील कुमार खरवार ने साक्ष्यों के अभाव में चारों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। इसी फैसले के खिलाफ धनंजय सिंह हाईकोर्ट पहुंचे थे।
धनंजय सिंह की ओर से तर्क दिया गया कि वह मामले के शिकायतकर्ता और घायल हैं, इसलिए बीएनएसएस की धारा 413 के तहत उन्हें अपील का अधिकार मिलता है।
लेकिन राज्य की ओर से एजीए ने कहा कि गैंगस्टर एक्ट का अपराध व्यक्ति नहीं, समाज के खिलाफ होता है, इसलिए हर शिकायतकर्ता को अपील का अधिकार देने से अनावश्यक मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, अपील खारिज
हाईकोर्ट ने राज्य के तर्कों से सहमति जताते हुए कहा कि गैंगस्टर एक्ट वाले मामलों में व्यक्तिगत शिकायतकर्ता की अपील पोषणीय नहीं है। अदालत ने कहा कि असामाजिक तत्वों पर कार्रवाई करना पूरी तरह राज्य की जिम्मेदारी है।
आखिरकार, अदालत ने धनंजय सिंह की क्रिमिनल अपील को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
