आरती कुंज बिहारी की एक अत्यंत लोकप्रिय भजन है, जो भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए गाया जाता है। इस आरती में श्रीकृष्ण के विभिन्न स्वरूपों, उनकी लीलाओं और उनकी दिव्यता का सुंदर वर्णन किया गया है। इसे सुनकर भक्तगण भक्ति के सागर में डूब जाते हैं और उनके हृदय में परम आनंद की अनुभूति होती है। इस आरती को अक्सर मंदिरों में सुबह और शाम की पूजा के समय गाया जाता है, जिससे वातावरण पूर्णतः भक्तिमय हो जाता है
आरती कुंज बिहारी की
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला॥
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली॥
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ …2
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं॥
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग॥
ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ …2
जहां ते प्रकट भई गंगा,
कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा॥
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच॥
हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ …2
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू॥
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद॥
कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥…2
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ …2
आरती कुंज बिहारी की केवल एक आरती नहीं, बल्कि भक्त और भगवान के बीच की एक गहरी भावना है। इसके शब्द और भाव हमें श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनकी कृपा की अनुभूति कराते हैं। यह आरती हमें हमारे जीवन में भक्ति और श्रद्धा का महत्व समझाती है और प्रभु के चरणों में आत्मसमर्पण करने की प्रेरणा देती है। जब भी इसे गाया जाता है, यह मन को शांत कर देती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। आइए, इसे गाकर और सुनकर अपने हृदय को भगवान की भक्ति से भर लें।