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काशीपुरी के तुलसीघाट पर सैकड़ों साल पुरानी परम्परा ‘नाग नथैया’ लीला में आस्था और विश्वास का अटूट संगम

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हरि हर की_नगरी काशी में अवस्थित सात मुक्तिपुरियों में से एक मायापुरी अर्थात् हरि का द्वार-हरिद्वार और काशी में माँ गंगा का प्रवेश गंगाद्वार असि संगम से तुलसीघाट क्षेत्र तट है। सनातन संस्कृति एवं परम्पराओं की इस नगरी में सदियों पूर्व तुलसी में श्रीहरि भक्ति देख माँ गंगा भी धारण करती हैं यमुना का स्वरुप.. जहाँ आज भगवान् श्रीकृष्ण कालिया नाग का मर्दन किया

काशीपुरी के तुलसीघाट पर सैकड़ों साल पुरानी परम्परा ‘नाग नथैया’ लीला में आस्था और विश्वास का अटूट संगम होता है। यहाँ माँ गंगा कुछ क्षणों के लिए यमुना में परिवर्तित होती हैं तो यमुना तट पर वृंद वन बिहारी लाल श्रीकृष्ण के सखाओं के संग गेंद खेल-खेलते तब भगवान् श्री कृष्ण अचानक कदम के पेड़ से यमुना (गंगा) में गेंद लेने को छलांग लगा देते और कालिया नाग का मर्दन कर वे बाहर निकले।

जहाँ छलांग लगाते ही चारो ओर वृन्दावन बिहारी लाल और हर-हर महादेव का जयघोष गूंज उठा

तीन लोक को बोझ ले,भारी भये मुरारी।
फण-फण पर नाचत फिरे, बाजे पग पट तारि।।

इस दृश्य को देखकर आकाश मण्डल में देवताओं के विमानों की झड़ी लग गई और कन्हैया की नाग नथैया लीला देखने लगे और आज मेरे कन्हैया का एक और नाम हो जाता है

जय बोलो नाग नथैया वृंदावन लाल की

इस अद्भुत अलौकिक पलों में कालिया नाग के फन पर बांसुरी बजाते कान्हा की अनूठी झांकी हर किसी को भावविह्वल कर गई

भाव, श्रद्धा, भक्ति, इच्छा, प्रेरणा से ही तो मनुष्य का अस्तित्व है!

परम् अस्तित्व ने सबसे पहले इच्छा किया कि यह जगत हो, तो जगत की उत्पत्ति हुई। फिर उस परम् अस्तित्व ने अपनी प्रतिकृति के रूप में स्वयं को भगवान् ने मनुष्य के रूप में प्रकट किया। काशीपुरी में पुराण कहते

एको वेणुधरो धराधरधर: श्रीवत्सभूषाधरो
यो ह्येक: किल शंकरो विषधरो गंगाधरो माधर:।
ये मातर्मणिकर्णिके तव जले मज्जन्ति ते मानवा
रुद्रा वा हरयो भवन्ति बहवस्तेषां बहुत्वं कथम्।।

मुरली धारण करने वाले, गोवर्धन पर्वत धारण करने वाले तथा वक्ष:स्थल पर श्रीवत्सचिह्न धारण करने वाले विष्णु एक ही हैं, उसी प्रकार कण्ठ में विष धारण करने वाले, अपनी जटा में गंगा को धारण करने वाले और अर्द्धांग में उमा को धारण करने वाले जो भगवान शंकर हैं, वे भी एक ही हैं ,किंतु हे माता मणिकर्णिके! जो मनुष्य आपके जल में अवगाहन करते हैं, वे सभी रुद्र तथा विष्णुस्वरुप हो जाते हैं, उनके बहुत्व के विषय में क्या कहा जाए

धर्म नगरी काशी के अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की सनातन परंपरा के निर्वाहक परम पूज्य महंत प्रो. विश्वभंर नाथ मिश्र के सानिध्य में आयोजित यह नाग नथैया की परंपरा लगभग चार दशक से अधिक पुरानी है। काशी के इस लक्खा मेलों में शुमार नाग नथैया लीला की शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया था

“जाति पाति पूछे नहिं कोई ।हरि को भजै सो हर का होई”।।
(सा.)

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