वाराणसी। काशी के रामेश्वर क्षेत्र में वरुणा नदी के तट पर रविवार की सुबह से आस्था और परंपरा का संगम देखने को मिला। प्राचीन और प्रसिद्ध लोटा-भंटा मेला का शुभारंभ होते ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। दूर-दराज़ के गांवों से आए भक्त भोलेनाथ को बाटी-चोखा का भोग लगाने के लिए सुबह से ही कतारों में खड़े दिखे। पूरा क्षेत्र हर-हर महादेव के जयघोष और बाटी-चोखा की सुवास से गूंज उठा।
वरुणा तट पर उमड़ा श्रद्धा का सैलाब
रामेश्वर स्थित पंचशिवाला क्षेत्र में मार्गशीर्ष (अगहन) महीने की षष्ठी तिथि पर हर साल लगने वाला यह मेला काशी की धार्मिक परंपराओं का अनोखा प्रतीक है। वरुणा व पंचशिवाला संगम क्षेत्र में आयोजित यह मेला देव दीपावली के कुछ दिन बाद लगता है। जैसे ही सूरज की पहली किरणें वरुणा तट पर पड़ीं, श्रद्धालु स्नान के बाद बाबा रामेश्वर महादेव के दर्शन और पूजन में जुट गए।
भक्त परंपरानुसार पहले गंगा और वरुणा नदी में स्नान करते हैं, फिर रेत पर बने अस्थायी देवालयों में पूजन-अर्चन करते हैं। इसके बाद परिवार और सगे-संबंधियों के साथ कंडों पर आलू, बैंगन और टमाटर भूनकर चोखा तैयार करते हैं। आटे और सत्तू से बनी बाटी के साथ यह चोखा मिलाकर भगवान शिव को भोग लगाया जाता है।
भगवान श्रीराम से जुड़ी है लोटा-भंटा मेले की कथा
लोटा-भंटा मेले का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ है। लोक मान्यता के अनुसार, रावण वध के बाद भगवान श्रीराम ने प्रायश्चित करने के लिए यहीं रामेश्वर क्षेत्र में एक मुट्ठी रेत से शिवलिंग बनाकर लोटे के जल से भगवान शंकर की पूजा की थी। पूजा के उपरांत उन्होंने बाटी-चोखा प्रसाद बनाकर भगवान शिव को भोग लगाया।
राधा-कृष्ण मंदिर के महंत राममूर्ति दास और रामेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी आचार्य पं. अनूप तिवारी बताते हैं कि यही स्थान भगवान श्रीराम और भगवान शिव के प्रथम मिलन का साक्षी रहा है। इसी कारण इस स्थल को रामेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि रामेश्वरम (दक्षिण भारत) की यात्रा के बाद काशी के इस स्थल पर भगवान श्रीराम ने रेत से शिवलिंग की स्थापना की थी। आज भी वह शिवलिंग भगवान राम की भक्ति और स्मृतियों को जीवित रखता है।
संतान प्राप्ति की कामना से उमड़ती है भीड़
लोटा-भंटा मेले में हर साल श्रद्धालु न केवल पूजा-अर्चना करने आते हैं, बल्कि संतान की प्राप्ति की कामना से बाबा रामेश्वर महादेव का आशीर्वाद भी लेते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां मन से मांगी गई मुरादें बाबा जरूर पूरी करते हैं।
प्रशासन और पुलिस ने की व्यापक व्यवस्था
आस्था और भीड़ को देखते हुए पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा के व्यापक इंतज़ाम किए हैं। एडीसीपी गोमती जोन वैभव बांगर, एसीपी राजातालाब अजय कुमार श्रीवास्तव सहित स्थानीय पुलिस टीम पूरे क्षेत्र में व्यवस्था संभाले हुए है। थाना रामेश्वर पुलिस के साथ यातायात पुलिस ने भी बैरिकेडिंग कर रास्तों पर नियंत्रण रखा है, ताकि श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो।
वातावरण में घुली भक्ति और लोक परंपरा की खुशबू
रामेश्वर क्षेत्र में सुबह से ही लोकगीत, भजन और मिट्टी के चूल्हों से उठती बाटी-चोखा की खुशबू ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। महिलाएं सिर पर लोटा लेकर जल चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर जातीं तो बच्चे और पुरुष पूजा-सामग्री लेकर पीछे-पीछे चलते। जगह-जगह अस्थायी दुकानें सज गई हैं, जहां पूजन सामग्री, खिलौने और मिठाइयां बिक रही हैं।
काशी की यह आस्था भरी परंपरा हर साल हजारों लोगों को जोड़ती है। रामेश्वर का लोटा-भंटा मेला केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि काशी की सांस्कृतिक पहचान है, जो आज भी अपनी मूल भावना के साथ जीवित है।
